- Description
- Additional information
- Reviews (1)
Description
Description
‘जोग जनम’ की साड़ी ओढ़कर ‘लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी उर्फ़ राजू’ उस अंग समेत जिसे लेकर पुरुष प्रधान समाज अहंकार में डूबा अपनी ज़ुबान से गालियों में दुनिया भर की औरतों को भोग चुका होता है, हिजड़ा समुदाय में शामिल हो गया। सदमा लिंग व लिंगविहीन दोनों समुदायों में था। क्यों यह बच्चा नर्क में गया। केवल एक शख़्स था जिसके माथे से तनाव की लकीरें मिट गयी थीं, वह था लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी। लक्ष्मी कहती है, ‘‘मैं सोई मुद्दत बाद ऐसी गहरी नींद जिससे रश्क किया जा सके।’’ इसी दिशा में मैं अपनी पहचान और हैसियत बनाऊँगी। और मैं गलत नहीं थी डार्लिंग। वही किया, फिर भी कभी-कभी तड़प भरी उदासी भीतर भरती है। मेरी जान !
मुझे लगता है जीवन की लय तो हाथ लगती नहीं बस नाटक किये जाओ जीने का। मैं चौंकती हूँ। स्मृति में सिंधुताई (माई) की आवाज़ कौंधती है, बेटा बस स्वाँग किये जा रही हूँ। लक्ष्मी कहती है, कल शाम को घर में बैठे-बैठे रोने लगी। साथ सारे चेले भी रो पड़े। लक्ष्मी की आँखें भरी हैं। मैं मुँह खिड़की की ओर घुमा लेती हूँ। वैशाली लक्ष्मी का हाथ सहलाने लगती है। खिड़की पर ‘कामसूत्र’ से लेकर अनेक बडे़ लेखकों की किताबें रखी हैं। लक्ष्मी ख़ूब पढ़ती है। ख़ूब सोचती है। उसमें चिन्तन की एक धार है। लक्ष्मी ने फिर अपने को दर्द में डुबो लिया। धीरे-धीरे बोलने लगी, जो लोग मुझे चिढ़ाते थे वे ही लोग मेरे शरीर को भोगने की इच्छा रखते थे। पुरुष को किसी भी चीज़ में यदि स्त्रीत्व का आभास मात्रा हो जाय वह उसे अपने क़दमों तले लाने के लिए पूरी ताकत लगा देता है।
लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी उर्फ़ राजू अब नयी दुनिया का वाशिन्दा था। इसी नयी दुनिया का अनदेखा-अनजाना चेहरा मौजूद है लक्ष्मी की आत्मकथा में कई भ्रमों, पूर्वाग्रहों को ध्वस्त करती हुई यह आत्मकथा न केवल हमें उद्वेलित करती है बल्कि अनेक स्तरों पर मुख्य समाज की भूमिका को प्रश्नांकित करती है। इस आत्मकथा की महत्ता किसी प्रमाण की मोहताज नहीं है।
– शशिकला राय
Additional information
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher |
Laxmi jaiswal –
“सपनों की उड़ान वही भर सकते हैं, जिनके हौसले बुलंद होते हैं।”
यह पुस्तक लेखिका लक्ष्मी जायसवाल द्वारा लिखित है, जो लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के संघर्ष, साहस और सफलता की कहानी को बयां करती है। एक ऐसा सफर, जो कठिनाइयों से भरा था, लेकिन आत्मसम्मान और दृढ़ इच्छाशक्ति ने हर चुनौती को पीछे छोड़ दिया।
लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी न केवल ट्रांसजेंडर समुदाय की सशक्त आवाज़ बनीं, बल्कि उन्होंने समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाई। लक्ष्मी जायसवाल ने इस पुस्तक में उनकी जिंदगी की अनसुनी कहानियों, उनके संघर्षों, समाज में उनके योगदान और उनकी अदम्य इच्छाशक्ति को बेहद संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है।
यह सिर्फ एक जीवनी नहीं, बल्कि उन सभी के लिए प्रेरणा है, जो अपने अस्तित्व को साबित करने का हौसला रखते हैं।
लक्ष्मी जायसवाल एक नवोदित लेखिका हैं, जो समाज के महत्वपूर्ण विषयों पर लेखन के प्रति समर्पित हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी यात्रा की शुरुआत गंभीर और शोधपरक लेखन से की है। उनकी लेखनी सामाजिक मुद्दों को गहराई से समझने और उन्हें प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने की क्षमता रखती है।
उनकी अब तक पाँच पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें “मुझे पहचानो: एक विश्लेषण” और “एक और द्रोणाचार्य: एक मूल्यांकन” प्रमुख हैं। “लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी: हौसले की उड़ान” में उन्होंने लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के संघर्ष, साहस और उपलब्धियों को अत्यंत प्रभावशाली शैली में प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि सामाजिक बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज भी है।