- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
मैं हिन्दू हूँ
प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद, उपनिषद दर्शन इत्यादि शास्त्रों का अध्ययन आरम्भ किया तो उनको ज्ञान का अथाह सागर देख उसी में रम गये।
वेद उपनिषद् तथा दर्शन शास्त्रों की विवेचना एवं अध्ययन सरल भाषा में प्रस्तुत करना ही गुरुदत्त की ही विशेषता है।
उपन्यासों में भी शास्त्रों का निचोड़ तो मिलता ही है, रोचकता के विषय में इतना कहना ही पर्याप्त है उनका कोई भी उपन्यास आरम्भ करने पर समाप्त किये बिना छोड़ा नहीं जा सकता।
मैं हिन्दू हूँ
(हिन्दू धर्म की मान्यताएँ)
हिन्दुत्व ही क्यों ?
पिछले साठ सालों से स्कूल जाने वाले हर बालक-बालिका के मुख से तथा जनता के मुँख से यह गवाया जाता रहा है- मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना- जबकि तथ्य यह है कि पिछले पन्द्रह सौ वर्षों में विश्व में जितना खून मज़हब के नाम पर बहा है, उसकी कोई तुलना नहीं है। कत्ले-आम, बलात्कार, अत्याचार का तो कोई हिसाब नहीं।
हिन्दू ने प्रत्येक मज़हब का स्वागत किया है और इसे हिन्दुस्तान में फलने-फूलने का अवसर दिया है।
अब एक अन्य खतरनाक मज़हब ‘नास्तिक’ एक चुनौती बनकर आ रहा है। दुनिया में नास्तिक मत (कम्यूनिज़म) ने भी हंगरी इत्यादि देशों में कम रक्त नहीं बहाया। नास्तिक्य तथा कम्यूनिज़म भी मज़हब के अन्तर्गत आते हैं।
अभी बीसवीं शताब्दी पर ही दृष्टि डालें तो देखेंगे कि हिन्दुस्तान जैसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक, हिमालय से पुरी तक एक सूत्र में बँधे देश को तीन टुकड़ों में मज़हबी आधार पर विभाजित कर दिया गया। यह उस मज़हबी जनून का कमाल है जो ‘नहीं सिखाता आपस में वैर रखना।’
एक मात्र हिन्दू धर्म ही ऐसा है जिसने विश्व भर में मानवता का प्रचार करने के लिए शान्ति दूत भेजे और बिना युद्ध किये विश्व भर को मानवता का पाठ पढ़ाया और प्रचार किया।
इस पर भी हिन्दू को साम्प्रदायिक कहना या तो मूर्खता ही कही जायेगी अथवा धूर्तता। हिन्दू कोई मज़हब नहीं है। यह कुछ मान्यताओं का नाम है। वे मान्यताएं ऐसी हैं जो मानवता का पाठ पढ़ाती हैं।
हिन्दुओं की धर्म पुस्तकों में मनुस्मृति का नाम सर्वोपरि है और मनुस्मृति धर्म का लक्षण करती है- धृति क्षमा दमोऽस्तेयं शौचम् इन्द्रिय-निग्रह, धीर्विधा सत्यमक्रोधो दशकम धर्म लक्षणम्। कोई बताये इनमें कौन सा लक्षण ऐसा है जो मानवता के विपरीत है।
स्मृति में धर्म का सार स्पष्ट शब्द में कहा है – श्रूयतां सर्वस्व श्रूत्वा चैवाव धार्यताम्, आत्मनः प्रतिकूलानि परेणाम् न समाचरेत।। (धर्म का सार सुनो और सुनकर धारण करो अपने प्रतिकूल व्यवहार किसी से न करो।
ऐसे लक्षणों वाले धर्म को साम्रप्रदायिक कहना तो मूर्खता की पराकाष्ठा कही जायेगी।
वास्तव में हिन्दू धर्म को न समझने के कारण दुनिया में अशान्ति मची हुई है। सम्पूर्ण भारत देशवासी हिन्दू ही हैं क्योंकि वे हिन्दुस्तान के नागरिक हैं। इस्लाम, ईसाई, पारसी, बौद्ध इत्यादि जो हिन्दुस्तान का नागरिक है वह हिन्दू ही है।
हमारे राजनैतिक नेता तथा आज के कुशिक्षित लोग अन्धाधुन्ध, बिना सोचे समझे लट्ठ लिये हुए हिन्दू के पीछे पड़ जाते हैं।
समस्या का हल तो है परन्तु राजनीति में आये स्वार्थी नेता अपना उल्लू कैसे सीधा करेंगे ?
बच्चों की पाठ्य पुस्तक में एक पाठ इस विषय में हो, कि हिन्दू क्या हैं, इसके मान्यताएं क्या हैं, और भारत के प्रत्येक नागरिक जो भी भारतवासी है, वह हिन्दू ही है।
हिन्दुओं की मान्यताएं शास्त्रोक्त हैं, बुद्घियुक्त हैं, किसी भी मज़हब के विरोध में नहीं। किसी भी मज़हब को मानने वाले वे हिन्दू की मान्यताओं को जो मानवता ही है, मान लें तो द्वेष का का कोई कारण नहीं रहेगा।
संक्षेप में हिन्दू की मानताएं हैं- जोकि शास्त्रोक्त हैं, तथा युक्तियुक्त हैं, इस प्रकार हैं-
- जगत् के रचयिता परमात्मा पर जो सर्वशक्तिमान हैं, अजर अमर है, विश्वास;
- जीवात्मा के अस्तित्व पर विश्वास;
- कर्म-फल पर विश्वास। इसका स्वाभाविक अभिप्राय है, पुनर्जन्म पर विश्वास;
- धर्म पर विश्वास। धर्म जैसा कि मनुस्मृति में लिखा है, जिसका सार है- आत्मनः प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत्।।
हिन्दू के इतिहास पर, हिन्दू की विवेचना पर तथा हिन्दू की मान्यताओं पर श्री गुरुदत्त जी ने तीन पुस्तकें लिखी हैं- हिन्दुत्व की यात्रा, वर्तमान दुर्व्यवस्था का समाधान-हिन्दू राष्ट्र तथा मैं (हिन्दू धर्म की मान्यताएं), जो प्रत्येक विचारशील व्यक्ति को पढ़नी चाहिए।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.