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Description
मन-माटी
मन-माटी दरअसल उपन्यास से अधिक अपनी जड़ों की तलाश में लगे व्यक्तियों की व्यथा का एक दस्तावेज़ है। उपन्यास का कोई पारम्परिक ढाँचा नहीं है क्योंकि इसमें केवल किसी एक व्यक्ति या परिवार की कथा नहीं है बल्कि एक खोज है जिसे हम केन्द्रीय मुद्दा मान सकते हैं। यह केन्द्रीय समस्या तरह-तरह के रंगों में हमारे सामने आती है। इसकी झलकियाश् कहीं सूरीनाम के जंगलों में मिलती हैं तो कहीं यह अमेरीका और योरोप के महाद्वीपों में नज़र आती है। अलग-अलग देशों में बसे लोगों की खोज इस तरह उद्घाटित होती है कि माटी को मन मान लेने पर विवश होना पड़ता है। दरअसल मन और माटी के प्रतीक को लेखक ने एक बड़े फलक पर स्थापित करने का प्रयास किया है।
असग़र वजाहत के लेखन की आत्मीय, अनौपचारिक और रोचक शैली उनका बेबाक अन्दाज़ इस उपन्यास में पूरी तरह देखा जा सकता है। पात्रों के साथ उनके परिवेश में डूब जाना, उनके मनो-भावों, आशा-निराशा, सुख-दुख के साथ के आत्मीय रिश्ता बना लेना पाठक को सुहाता है।
एक देश-काल की कहानी न होते हुए भी मन-माटी पाठक पर गहरा प्रभाव छोड़ती है। युगों युगों से मनुष्य तरह-तरह की आवश्यकताओं या मजबूरियों के कारण एक जगह से उखड़ता है और दूसरी जगह जाकर बस जाता है। सरसरी ढंग से देखने पर यह बहुत सहज और सीधी बात लगती है लेकिन इसके मर्म तक पहुँचने पर लगता है कि यह तो मृत्यु और जन्म जैसे गम्भीर प्रश्न की तरह हमें चिन्तित करती है। इसी जिल्द में शामिल दूसरा उपन्यास ‘चहारदर’ भी प्रेम को ही प्रतिष्ठित करता है। साथ ही दोनों लघु उपन्यासों में राजनीति के षड्यंत्रों का भी पर्दाफाश किया गया है जिसके लिए व्यवस्था ही सर्वोपरि है, मनुष्यता और भावनाओं की कोई कीमत नहीं। दोनों लघु उपन्यासों की सहजता, सरलता ही उनकी विशिष्टता है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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