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Description
मंटो का इंतजार
‘मंटो के साथ बातचीत-बेशक फैंटेसी ही हो, लेकिन यह ख्याल आते ही मंटो की जिन्दगी के सैंकड़ो पहलू मेंरे सामने खुलते लगे। कितना अजीब थी कि वह ठीक मेरे सामने खड़ा था अपने अफसानों और अपनी अन्य रचनाओं में जिन्दा, लेकिन सवाल था कि मैं उसे अपने साथ बातचीत में कैसे शामिल करूँ ? ऐन इस वक़्त मुझे अपने साथी लेखक-मित्रों की याद आ गई और जैसे ही मैंने अपना इरादा उनके सामने जाहिर किया, वे खुले मन से मंटो को लेकर मेरे साथ बातचीत के लिए तैयार हो गये।’
नरेन्द्र मोहन के इन शब्दों से जाहिर है कि साक्षात्कार भी नाटक की तरह एक समवेत रचना-कर्म है जिस के साथ दूसरे और तीसरे की अनवरत श्रृंखला जुड़ी हुई है।
इन साक्षात्कारों में हमारे समय के हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं लेखकों के साथ कई संवाद कड़ियाँ मंटो को पहचानने-जाँचने की दृष्टि से रची गयी हैं। प्रश्नों की धार पर कई उलझी बातें सुलझती गयी हैं, कई दृष्टिकोण उभरते गये हैं, कई खिड़कियाँ मंटों की जिन्दगी और साहित्य की तरफ अनायास खुलती गयी हैं।
‘मंटो का इंतजार’ पुस्तक में मंटो पर केंद्रित साक्षात्कार हैं – समकालीन लेखकों द्वारा नरेन्द्र मोहन से बातचीत जिससे मंटो का बहुपक्षीय व्यक्तित्व अपनी समग्रता में उभरता गया है। ये साक्षात्कार मंटो तक नयी तरह से पहुँचने का जरिया बने हैं-एक तरह का ‘प्रिज्म’ जिसमें पाठक मंटो को कई रंग-छायाओं में, कई आयामों में देख सकते हैं।
नरेन्द्र मोहन के ये साक्षात्कार मंटो की जीवन-कथा और उसकी साहित्यिक यात्रा के विभिन्न पड़ावों को, उसके युग और आज को जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं। हर साक्षात्कार में मंटो सांस लेता नजर आता है। ‘धारा के विरुद्ध’ लिखने वाले मंटो जैसे लेखक को चौदह वार्ताओं के साक्षात्कारों में कॉस्ट्रक्ट, डी-कॉस्ट्रक्ट और रिक्रियेट होते हुए देखने की दृष्टि मंटो के अध्ययन को नयी दिशाओं की ओर ले जा सकती है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2014 |
Pulisher |
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