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मन्त्र रामायण
दो शब्द
‘‘राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने॥’’
परम श्रद्धेय प्रातः वंदनीय श्री गोस्वामी तुलसीदास की परम चित्र पूजनीय महारचना श्री रामचरित मानस के कुछ श्लोकों का मन्त्रात्मक विचार कर विभिन्न साधकों के द्वारा इनका सफल प्रयोग करके लाभ उठाने के पश्चात् यह प्रबल जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि भारत के प्रत्येक नर नारी का इसके ऊपर पूर्ण अधिकार है अतः यह अनुभव किये गये मन्त्रात्मक श्लोक भारतीय जनमानस को पूर्ण विधि के साथ प्रदान कर दिए जाने चाहिए। इस कार्य में भाई श्री रणधीर जी का भी अच्छा सहयोग मिला और यह पुस्तक आपके हाथों में आ पाई है।
लगभग दस वर्ष पहले मैंने रामायण विषयक सभी ग्रन्थों का अवलोकन किया जिसमें संस्कृत के तथा तुलसीदास जी द्वारा निर्मित रामायण अनेकों विभिन्न रूपों में प्रदर्शित हुई। काक भुशुण्डी रामायण ने हृदय को शान्ति प्रदान की तो बाल्मीकि जी कृत अद्भुत रामायण ने रामायण की कई घटनाओं पर प्रश्न चिह्न लगा दिया।
आवश्यकता ही आविष्कार की जननी हुआ करती है अतः मैंने श्री तुलसीदास जी के मुख्य ग्रन्थ को ही आधार बनाया जो कि घर-घर में पूजा जाता है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher |
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