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मर्यादा : भाग – 1-6
सरस्वती, जागरण और मर्यादा बीसवीं सदी के उन हिंदी पत्रों में हैं, जिन्होंने अपने अथक संघर्ष से भारतीय मानस का निर्माण किया है । स्वाधीन–चेतना और हिंदी नवजागरण का स्वरूप निर्मित करने में ‘मर्यादा’ का विशेष महत्व इसलिए है कि उसका जीवनकाल संक्षिप्त है और वह पूर्णतः राजनीतिक पत्रिका थी। सन् 1910 से 1923 तक, लगभग 13–14 वर्ष। किंतु अपने प्रखर राजनीतिक दृष्टिकोण, ओजस्वी स्वर और निर्भ्रान्त अविचलित दृष्टिकोण के नाते उसने अत्यन्त क्रांतिकारी भूमिका निभायी। उसका योगदान प्रायः ओझल और विस्मृत है। डॉ. कर्मेन्दु शिशिर ने अत्यंत सूझ–बूझ और अध्यवसाय के साथ ‘मर्यादा’ की चुनिंदा सामग्री छः खंडों में प्रस्तुत करके न केवल एक अभाव की पूर्ति की है, बल्कि अनिवार्य ऐतिहासिक दायित्व अदा किया है। आज हमारे नवऔपनिवेशिक दौर में पिछले औपनिवेशिक दौर की पत्रकारिता का संघर्ष, उसकी उपलब्धियाँ और उलझनें हमारे लिए प्रेरणा का काम करती हैं। हमारे पुरखों ने प्रेस एक्ट और ब्रिटिश दमन के बावजूद एक नये भारत के उदय का जो संघर्ष किया, अपने देश, समाज, संस्कृति और इतिहास से जो आत्मीय लगाव प्रदर्शित किया, वह हमारे लिए शिक्षाप्रद है। उन्होंने दिखाया कि एक संघर्षशील जाति किस तरह अपने सामाजिक इतिहास को खोजती है, जनता की एकता को सामने रखकर किस तरह भविष्य का परिप्रेक्ष्य अपनाती है। ‘मर्यादा’ की इस सामग्री में हमें केवल साम्राज्यवाद से टकराव नहीं मिलता, विकास की नीतियों पर आपसी वैचारिक टकराहटें भी मिलती हैंय स्वाधीनता आंदोलन के अंतर्विरोध भी मिलते हैं। कर्मेन्दु शिशिर ने इस विशाल भंडार में से चुनकर सर्वाधिक मूल्यवान और प्रासंगिक सामग्री छ: खंडों में प्रस्तुत की है।
– अजय तिवारी
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
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