

Matam

Matam
₹225.00 ₹180.00
₹225.00 ₹180.00
Author: Swadesh Deepak
Pages: 118
Year: 2024
Binding: Paperback
ISBN: 9789357755603
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
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मातम
सावित्री की शादी अभी पिछले साल ही हुई है। शादी के दिनों में पिता ज़िन्दगी-मौत के बीच लटक रहे थे। सबको खटका था जाने किस वक़्त चल बसें। शादी कम-से-कम एक साल के लिए तो धरी-की-धरी रह जायेगी। उसने सोलह शुक्रवार व्रत रखे थे। पिता मरें तो उसकी शादी के बाद । शादी के बाद जब-जब वह मैके आयी बदमज़गी ही रही। कुछ भी अच्छा घर में पकता न था। शादी के चमकीले कपड़े वैसे-के-वैसे पड़े रहे, पिता मौत के मुँह में हो तो सजना-सँवरना क्या अच्छा लगता है?
बड़े भाई का अपना अलग परिवार है। उसकी अपनी कमाई थोड़ी-सी है, माँ-बाप की क्या मदद करता । सावित्री शुरू से उसके ख़िलाफ़ है। भाई का खून सफेद हो जाने की बात वह पहले भी कई दफा कह चुकी है। अब वह बड़ी भाभी को पैनी नज़र से देखते हुए कहती है- “भइया को अब तो ख़र्च करना चाहिए। बाप ज़िन्दा था तब तो कुछ नहीं किया। मरने के बाद तो कुछ शर्म आनी चाहिए। हाय, बाऊजी तो ज़िन्दगी-भर उसके एक पैसे तक को देखने के लिए तरसते रहे।” हालाँकि सच यह है कि नौकरी लगने के आठ साल बाद तक बड़ा क्वाँरा रहा, वेतन की पाई-पाई घर देता था ।
बाहर कुछ और औरतें पहुँच गयी हैं। स्यापा फिर से शुरू हो गया है। सावित्री कमर कसे दायरे में पहुँच गयी है। कई तरफ़ से ‘न, न’ की आवाजें आयीं। लेकिन वह कहाँ मानने वाली थी। भरे गले से बोली, “हाय तुम सबको भगवान का वास्ता। मुझे कोई न रोके । मेरा शेर जैसा बाप मर गया। हाय रब्ब जी!”
बड़ी भौजाई थोड़ी सीधी है। उसे स्यापे के कायदे-कानून का पूरा ज्ञान नहीं। वह सुर-ताल के साथ दूसरी औरतों का साथ नहीं दे पा रही। एक बड़ी-बूढ़ी ने उसे तीखी आवाज़ में डाँटा – “अजी तुम्हें शर्म आनी चाहिए। उधर देखो, कल की ब्याही सावित्री कैसे ताल के साथ ताल मिलाकर स्यापा कर रही है।”
– ‘मातम‘ कहानी से
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Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher |
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