Mayamatam : Set of Two Volumes (दानवराजमय रचित मयमतम्)
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Description
दानवराजमय रचित मयमतम्
मयदानव द्वारा रचित ‘मयमत’ दक्षिण भारतीय वास्तु-परम्परा अथवा द्रविड रीति का मानक ग्रन्थ है।
‘मयमत’ ग्रन्थ में वास्तु के स्थान पर ‘वस्तु’ पद का प्रयोग किया तथा ‘वास्तुशास्त्र’ के स्थान पर सभी जगह ‘वास्तुशास्त्र’ का प्रयोग किया है। मय के अनुसार वस्तु ही मूल है तथा वस्तु से उत्पन्न पदार्थ ‘वास्तु’ है। इन्होंने पृथिवी को प्रथम वस्तु माना है। इसके अतिरिक्त प्रासाद, यान एवं शयन भी वास्तु की श्रेणी में परिगणित हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ 36 अध्यायों में विभक्त है। इसका प्रथम अध्याय संग्रहाध्याय, दूसरा वस्तुप्रकार, तीसरा भूपरीक्षा, चौथा भूपरिग्रह, पाचवाँ मानोपकरण, छठा दिक्परिच्छेद, सातवाँ पदविन्यास, आठवाँ बलिकर्म, नवाँ ग्रामविन्यास, दसवाँ नगरविधान, ग्यारहवाँ भूलम्बविधान, बारहवाँ गर्भविन्यास, तेरहवाँ उपपीठ-विधान, चौदहवाँ अधिष्ठानविधान, पन्द्रहवाँ पादप्रमाण-द्रव्यपरिग्रहविधान, अट्ठाहरवाँ प्रासादोर्ध्ववर्ग, उन्तीसवाँ एक भूमि विधान तथा बीसवाँ द्विभूमिविधान है। इसके पश्चात् क्रमशः त्रिभूमिविधान, चतुर्भूम्यादि बहुभूमिविधान, प्राकारपरिवार-विधान, गोपुरविधान, मण्डपसभाविधान, शालाविधान, चतुर्गृहविधान, गृहप्रवेश, राजवेश्मविधान, द्वारविधान, यानाधिकार, शयनासनाधिकार, लिङ्गलक्षण, पीठ-लक्षण, अनुकर्म विधान तथा प्रतिमा-लक्षण संज्ञक अध्याय हैं। ग्रन्थ के अन्त में कूपारम्भ संज्ञक परिशिष्ठ प्राप्त होता है।
इस प्रकार विषयवस्तु की दृष्टि से मयमत ग्रन्थ में प्रथम ‘वस्तु’ (अथवा वास्तु) भूमि है। तदनन्तर ग्राम-नगरादि का स्थान आता है। इसके पश्चात् देवों एवं चारों वर्णों के लिये भूमि, भवन, यान तथा श्यनासन का स्थान आता है। तीसरे एवं चौथे अध्याय में भूमि के परीक्षण का वर्णन प्राप्त होता है। तदनन्तर माप के विभिन्न प्रकारों एव ईकाइयों का निरूपण किया गया है। चार प्रकार के शिल्पी-स्थपति, सूत्रग्राही, तक्षक तथा वर्धकि निर्माण कार्य के अभिन्न अंग है – अतः इनका ग्रन्थ में विस्तार से वर्णन किया गया है। निर्माण हेतु दिशा का सटीक ज्ञान एवं कार्य के अनुसार वास्तुपदविन्यास आवश्यक होता है। अतः ग्रन्थ में इनका विवेचन प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त ग्राम, नगर, भवन, नींव में गर्भविन्यास, उपपीठ, अधिष्ठान, स्तम्भ, द्रव्य-संग्रह, प्रस्तरकरण, सन्धिकर्म, कलश, छत एवं शिखर आदि का निरूपण किया गया है। देवालय, राजभवन-मर्यादा गोपुर, मण्डप, सभागृह, शालगृह, अलिन्द, आँगन आदि वास्तु के अंग है। इनका भी विवेचन ग्रन्थ में प्राप्त होता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ को हिन्दी भाषा में भावानुवाद, विशिष्ट व्याख्यात्मक टिप्पणी, एवं पारिभाषित शब्दावली के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Sanskrit & Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
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