Meera Rachna Sanchayan

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Meera Rachna Sanchayan

Meera Rachna Sanchayan

200.00 199.00

In stock

200.00 199.00

Author: Madhav Hada

Availability: 5 in stock

Pages: 208

Year: 2021

Binding: Paperback

ISBN: 9788126053469

Language: Hindi

Publisher: Sahitya Academy

Description

मीरा रचना संचयन

मीरा की कविता ठहरी हुई और दस्तावेजी कविता नहीं है। यह लोक में निरंतर बनती-बिगड़ती हुई जीवंत कविता है। लोक के साथ उठने बैठने के कारण यह इतनी समावेशी, लचीली और उदार है कि सदियों से लोक इसे अपना मानकर इसमें अपनी भावनाओं और कामनाओं की जोड़-बाकी कर रहा है। यह इस तरह की है कि लोक की स्मृति से हस्तलिखित होती है और फिर हस्तलिखित से एक लोक की स्मृति में जा चढ़ती है। लोक की स्मृति में मीरा के नाम से प्रसिद्ध और मीरा की छापवाले हजारों पद मिलते हैं और ये आज के हिसाब से एकाधिक भाषाओं में भी हैं। मीरा के पदों के उपलब्ध प्राचीनतम हस्तलिखित रूप सोलहवीं सदी के हैं और इसके बाद भी ये निरंतर मिलते हैं। ये पद राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश के ग्रंथाकारों और निजी संग्रहों में उपलब्ध हैं। यहाँ संकलित पद उपलब्ध सभी स्रोतों से लिए गए हैं और ऐसे पदों को प्राथमिकता दी गईं है, जिनमें मीरा की घटना संकुल जीवन यात्रा, मनुष्य अनुभव, जीवन संघर्ष और अलग भक्ति का पता-ठिकाना है। अधिकांश मान्यताओं के अनुसार मीरा का जन्म 1498 ई. के आसपास मेड़ता (राजस्थान) में और निधन 1546 ई. में द्वारिका (गुजरात) में हुआ। मीरा मेड़ता के संस्थापक राव दूदा के चौथे बेटे रत्नसिंह की पुत्री थी। उसका लालन-पालन दूदा की देख-रेख में उसके बड़े बेटे वीरमदेव के परिवार में हुआ। कृष्ण भक्ति के संस्कार उसको अपने कुटुंब से मिले। उसका विवाह मेवाड़ (राजस्थान) के महाराणा सांगा के बेटे भोजराज से 1516 ई. के आसपास हुआ। विवाह के कुछ समय बाद ही 1518-1523 ई. के बीच कभी भोजराज का निधन हो गया। यह समय मेवाड़-मेड़ता में अंतःकलह, सत्ता संघर्ष और बाह्य आक्रमणों का था। मीरा को उसकी भक्ति संबंधी रीति नीति के कारण मेवाड़ में सांगा के बाद सत्तारूढ़ विक्रमादित्य (1528-1531 ई.) और रत्नसिंह (1531-1536 ई.) की नाराजगी, निंदा और प्रताड़ना झेलनी पड़ी। मीरा यहाँ से मेड़ता गई, लेकिन 1536 ई. में जोधपुर के मालदेव ने आक्रमण कर मेड़ता को उजाड़ दिया। मेवाड़-मेड़ता में असुरक्षित और निराश्रय मीरा यहाँ से द्वारिका चली गई और कहते हैं कि यहीं उसका निधन हुआ। कुछ लोगों की धारणा है कि वह यहाँ से तीर्थ यात्रा पर दक्षिण में निकल गई और उसकी मृत्यु 1563-65 ई. के आसपास हुई।

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Paperback

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Language

Hindi

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Publishing Year

2021

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