Meri Aawaj Suno

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Meri Aawaj Suno

Meri Aawaj Suno

395.00 330.00

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395.00 330.00

Author: Kaifi Azmi

Availability: 5 in stock

Pages: 267

Year: 2020

Binding: Paperback

ISBN: 9788126706464

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

मेरी आवाज सुनो

गीत लिखना और ख़ास तौर पर फि’ल्मों के लिए गीत लिखना कुछ ऐसा अमल है जिसे उर्दू अदीब एक लंबे अरसे तक अपने स्तर से नीचे की चीज समझता रहा है। एक जमाना था भी ऐसा जब फि’ल्मों में संवाद–लेखक (‘मुंशी’) और गीतकार सबसे घटिया दर्जे के जीव समझे जाते थे। इसलिए अगर मरहूम ‘जोश’ मलीहाबादी फि’ल्म–लाइन को हमेशा के लिए ख़ैरबाद कहकर ‘सपनों’ की उस दुनिया से भाग आए तो इसका कारण आसानी से समझा जा सकता है।

उतना ही आसानी से यह बात भी समझी जा सकती है कि क्यों लोगों ने राजा मेहदी अली ख़ान जैसे शायरों पर ‘नग़्मानिगार’ का लेबिल चिपकाकर उनकी शायराना शख्शियत को एक सिरे से भुला दिया। लेकिन फिर एक जमाना वह भी आया जब लखनऊ और दिल्ली की सड़कों पर फटे कपड़ों और फटी चप्पलों में मलबूस, हफ्ते में दो दिन भूखे रहनेवाले तरक्की पसंद शायरों की एक जमात रोजी–रोटी की तलाश में आगे–पीछे बंबई जा पहुँची। हर हाल में अपनी आवाज सुनाने के लिए कमर बाँधे इन अदीबों में ‘मजरूह’ और ‘मख़्दूम’ भी थे, ‘साहिर’ और ‘असद’ भोपाली भी थे, जाँनिसार ‘अख़्तर’ और अख़्तरुल–ईमान भी थे, गुरुबख़्शसिंह ‘मख़्मूर’ जालंधरी भी थे और हमारे ‘कैफी’ आजमी भी थे।

यह वह जमाना था जब फि’ल्म–लाइन में एक चमक–दमक तो थी पर आज की तरह रुपयों की बरसात नहीं होती थी। भारतभूषण जब चोटी के कलाकारों में गिने जाते थे तब भी उनकी माहाना आमदनी कुछ हजार रुपयों तक महदूद थी। फि’ल्म–लाइन के उन दिनों के ‘जल्वे’ के बारे में मंटो ने जो कुछ बयान किया है, उससे आगे कोई क्या कहे ! लेकिन फिर इन्हीं तरक्की पसंद नौजवान शायरों का कमाल यह रहा कि जहाँ तक गीत–कहानी–संवाद का सवाल है, उन्होंने फि’ल्म–जगत का नक्शा ही बदलकर रख दिया। नग़्मगी के अलावा अछूते बोल और ऊँचे ख़यालात, भविष्यमुखी दृष्टि और इनसानी जिन्दगी के उरूज को लेकर देखे जानेवाले सपने इन गीतकारों की विशेषता थे।

सच तो यह है कि, इन गीतकारों के पहले या उनके बाद, गीत की विधा कभी इतनी ऊँचाई तक नहीं पहुँची जहाँ तक उसे इन शायरों के दस्ते–मुबारक ने पहुँचा दिया। इन शायरों और नग़्मानिगारों के योगदान को समझना हो तो आज के पतन के माहौल से मुकाबला करके समझिए जब पैसा बटोरने के लिए लालायित खोटे सिक्के खरे सिक्कों को बाजार से विस्थापित करने लगे हैं। एक स्वनामधन्य ‘गीतकार’ ने तो अमीर खुसरो के दो–दो गीत चोरी किए और खुसरो का नाम देने तक की जरूरत नहीं समझी, बल्कि गीतों के आख़िरी मिसरे हटा दिए जिनमें खुसरो का नाम आता था। ऐसे ही अँधेरे, काले माहौल में ‘कैफी’ जैसे शायरों के गीत जुगनुओं की तरह चमकते दिखाई देते हैं और, आप जानें, अल्लामा इक’बाल ने तो जुगनू को परवाने से लाख दर्जा बेहतर ठहराया है कि जुगनू किसी दूसरे की आग का मुहताज नहीं होता। मुसाफि’र अगर हौसले और हिम्मत का धनी है तो वह जुगनुओं की रौशनी में अपना सफ’र बखूबी जारी रख सकता है ।

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Authors

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Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2020

Pulisher

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