- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
मिलजुल मन
‘मिलजुल मन’ वरिष्ठ कथाकार मृदुला गर्ग का साहित्य अकादेमी सम्मान से सम्मानित उपन्यास है, जो उनके लेखन की तरोताजगी और जिंदादिली की एक मिसाल है। भाषा में ऐसी रवानी, किस्सागोई में ऐसी मासूमियत और अतीत और वर्तमान की एक दूसरे में इतनी गहरी घुसपैठ हालिया प्रकाशित और किसी उपन्यास में देखने को नहीं मिलती।
इस उपन्यास की नायिका गुलमोहर उर्फ गुल और उसकी बहन मोगरा हैं। पचास के दशक के दरम्याने वर्ग की ज़िंदगी और समाज में आनेवाले बदलाव और आज़ाद भारत में उसकी भूमिका की एक बारीक पड़ताल जो मोगरा ने अपने पिता बैजनाथ जैन के जीवन-व्यवहारों के बहाने की है, उन्हीं हालात में अपने बचपन और उस दौर के चरित्रों को भी देखा-भाला। ऐसे चित्रों में डॉ. कर्णसिंह, मामाजी, जुग्गी चाचा, बाबा, दादी और कनकलता आदि अनेक अविस्मरणीय शख्सियत शामिल हैं जिनकी अपनी अपनी खसूसियात थीं। गुल का विकास इन्हीं सबके बीच हुआ और उसने अपनी शख्सियत को तरतीब दी।
यह उपन्यास गुल के उन पक्षों पर भी एक तफ़सीली नजर है जो एक लड़की, एक मनुष्य, एक प्रेमिका, एक पतली और एक कथाकार के अलग-अलग किरदारों में रमे है।
मृदुला गर्ग ने एक बेहद नाजुक और नजदीकी रिश्ते और एक सशक्त कहानीकार के बीच जिस साफ़गोई और संवेदनशीलता से इस उपन्यास का ताना-बाना बुना है वह न केवल बेहद दिलचस्प है बल्कि एक मेयारी अदबी हासिल भी है।
यह वर्तमान दौर के हिन्दी साहित्य में बहुत कुछ नया जोड़ता है।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.