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नास्तिक
प्रथम परिच्छेद
‘‘पिताजी ! प्रज्ञा कहां है ?’’
‘‘अपनी ससुराल में।’’
‘‘तो आपने उसका विवाह कर दिया है ?’’
‘‘नहीं, मैंने नहीं किया। उसने स्वयं कर लिया है, इसी कारण तुम्हें सूचना नहीं दी।’’
पुत्र उमाशंकर यह सुन विस्मय में पिता का मुख देखने लगा। फिर उसने कहा, ‘‘परन्तु उसके पत्र तो आते रहे हैं। कल जब मैं लौज से एयर-पोर्ट को चलने लगा था, उस समय भी उसका एक पत्र मिला था।’’
‘‘क्या लिखा था उसने ?’’
‘‘यही कि वह बहुत प्रसन्न होगी यदि मैं वहाँ से एक गोरी बीवी लेकर आऊंगा।’’
‘‘तो फिर लाये हो क्या ?’’
‘‘हाँ, पिताजी ! मेरे सन्दूक में है। एयर-पोर्ट पर उस पर इम्पोर्ट-ड्यूटी भी लगी है।’’
‘‘और उसको उत्तर किस पते पर भेजते थे ?’’
‘‘पता यहाँ ग्रेटर कैलाश का ही था, परन्तु कोठी का नम्बर दूसरा था। मैं समझता था कि हमारी कोठी के दो नम्बर हैं। उसकी कोठी कहां है ?’’
उमाशंकर कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से ‘औषध-विज्ञान’ में डॉक्टरेट कर लौटा था। वह दिल्ली हवाई-पत्तन से अभी-अभी घर पहुँचा था। पिता अपनी मोटरगाड़ी में अपनी पत्नी और छोटे लड़के शिवशंकर के साथ हवाई-पत्तन पर गया था और पुत्र उमाशंकर को साथ ले आया था।
कोठी के बाहर मोटर से उतरते ही उमाशंकर ने अपनी बहन प्रज्ञा के विषय में पूछा था। मार्ग भर वह विचार करता रहा था कि उसे एक अमरीकन डौल दिखाकर उसका परिचय उसकी भाभी कहकर करायेगा। यही कारण था कि कोठी में पहुँचते ही उसे उपस्थित न देख उसने प्रश्न कर दिया था।
उमाशंकर के प्रश्न का कि प्रज्ञा की कोठी कहाँ है, उत्तर माँ ने दिया, ‘‘यहीं, इसी कालोनी में। उसके पति का मकान यहाँ से चौथाई किलोमीटर के अन्तर पर है।’’
इस समय पूर्ण परिवार मकान के ड्राइंग रूम में पहुँच गया। वहाँ एक कोने में टेलीफोन रखा देख उमाशंकर ने पूछ लिया, ‘‘उसके घर पर टेलीफोन है ?’’
‘‘हाँ ! किसलिये पूछ रहे हो ?’’
‘‘मैं उसे बताना चाहता हूँ कि मैं उसकी भाभी को भी साथ लाया हूँ।’’
इस पर पिता रविशंकर हँस पड़ा। हँसकर वह बोला, ‘‘पहले हमें तो उसे दिखाओ ?’’
‘‘तो आप उसको शकुन देंगे ?’’
‘‘हाँ ! वह मुँह दिखायेगी तो उसे शकुन देना ही होगा और उसपर न्यौछावर भी करूँगा।’’
‘‘तब तो उसे सूटकेस में से निकालना पड़ेगा। वह बेचारी अपने नये बने श्वसुर और उसके शकुन से वंचित क्यों रह जाये ?’’ इतना कह वह सोफा से उठने लगा तो उसके छोटे भाई ने कह दिया, ‘‘दादा ! चाबी मुझे दो। मैं यह कल्याण का कार्य कर देता हूँ। आपने मुझे सहबाला नहीं बनाया तो भी मैं प्रज्ञा बहन की भाँति बलपूर्वक सहबाला बन पुरस्कार पा जाऊँगा।’’
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 1999 |
Pulisher |
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