Nahush

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Author: Maithlisharan Gupt

Availability: 5 in stock

Pages: 44

Year: 2009

Binding: Paperback

ISBN: 0000000000000

Language: Hindi

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

नहुष

‘महाभारत’ के ‘उद्योग पर्व’ में आए नहुष के उपाख्यान से प्रभावित हो श्रीमैथिलीशरण गुप्त ने ‘इन्द्राणी’ शीर्षक से एक खंडकाव्य आरम्भ किया, जो पूरा होते-होते ‘नहुष’ के रूप में हिन्‍दी जगत के सामने आया।

सात सर्गों में विभक्त ‘नहुष’ के इस आख्यान में गुप्त जी ने मानव-दुर्बलताओं, विशेषकर काम तथा अहंकार, को रेखांकित करते हुए बताया है कि इनके चलते मनुष्य को स्वर्गासीन होकर भी भयावह पतन का भागी बनना पड़ सकता है।

ऋषिवध के प्रायश्चित्त स्वरूप जब स्वर्ग के राजा इन्द्र को एकान्त जल में समाधि लगानी पड़ी तो स्वर्ग की व्यवस्था देखने के लिए नहुष को इन्द्र के आसन पर बिठाया गया। सुबुद्ध और शक्तिशाली नहुष ने अपने हर कर्तव्य का सफलतापूर्वक पालन किया, असुरों को किनारे कर दिया लेकिन इन्द्र की पत्नी शची का सौन्दर्य देख उसके हृदय में उसे पाने की इच्छा पैदा हो गई। उसने शची से विवाह का प्रस्ताव देवताओं को भेजा लेकिन शची इसके लिए सहमत नहीं थी। उसने स्वयं के बचाव के लिए शर्त रखी कि सप्त ऋषि नहुष की पालकी उठाकर लाएँ तो वह विवाह कर लेंगी।

नहुष ने आज्ञा दी और सप्त ऋषि की पालकी उठाकर चले, लेकिन काम के आवेग में नहुष ने व्यक्तियों को तेज चलने के लिए कहा और इस जल्दबाजी में उसकी लात एक ऋषि को लग गई। क्रोधित होकर ऋषियों ने नहुष को साँप बनने का शाप दिया और इस तरह वह मानव जो जीते जी स्वर्ग का अधिपति बन गया था, वापस पृथ्वी पर आ पड़ा।

इसी कथा को मैथिलीशरण गुप्त ने इस खंडकाव्य में छन्दबद्ध किया है।

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Paperback

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Language

Hindi

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Publishing Year

2009

Pulisher

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