Natani

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375.00 285.00

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Author: Ratankumar Sambharia

Availability: 5 in stock

Pages: 251

Year: 2025

Binding: Paperback

ISBN: 9789362018052

Language: Hindi

Publisher: Setu Prakashan

Description

नटनी

‘नटनी’ उपन्यास हाशिये के समाज को मुख्य पृष्ठ पर लाने की जिद्दोजहद है। यह वह समाज है, जो सदियों से शोषण, गुलामी, तिरस्कार और अत्याचार का शिकार होकर खुले आसमान तले और धरती के किसी कोने पर खानाबदोशी जीवन जीने को मजबूर है।

जनकथाकार रत्नकुमार सांभरिया अपने इस उपन्यास के माध्यम से ऐसी ही दुनिया से रूबरू करवाते हैं। खानाबदोश नट जाति की रज्जो तर्फ रीतासिंह के जुझारू चरित्र को गढ़कर सामन्तवाद को खुली चुनौती देते हैं तथा जात्याभिमानी गढ़ को ध्वस्त करने में पूरी लेखकीय कला दिखाते हैं। पंचायतीराज चुनाव के बहाने दलित व दमित जातियों की नेतृत्व क्षमता को उजागर करते हुए स्पष्ट किया है कि यदि उन्हें संविधान प्रदत्त अधिकारों के तहत उचित अवसर दिया जाए तो वे ‘अन्धेर नगरी, चौपट राजा’ वाली कहावत को नेस्तनाबूद कर सकते हैं। उनमें न केवल ईमानदारी है, अपितु कुछ कर गुजरने का अद्भुत जज्चा भी है। उपन्यास की नायिका रज्जो इसका जीवन्त उदाहरण है। वह आत्मबल और हौसले से इतनी लबरेज है कि वर्षों से गाँव पर राज करने वाली ‘हवेली’ को अकेले ही चुनौती देती है। उसका पति शमशेर सिंह, जो हवेली का ही बेटा और वारिस है, रज्जो की कला का नहीं, काया का कायल हो उससे विवाह करके उसे पढ़ाता है। रस्सी पर चलकर करतब दिखाने वाली वही रज्जो पढ़-लिखकर बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के ध्येय वाक्य ‘शिक्षा शेरनी का दूध होती है’ को चरितार्थ करती है और हवेली की ओर से मोर्चा खोल देती है। गाँव के सरपंच का चुनाव जीत सामन्तवादी व जातीय अहंकार का मर्दन कर देती है।

उपन्यासकार ने देश की स्वाधीनता के पश्चात उभरे पंचायतीराज व उसमें पनपे भ्रष्टाचार की पोल खोलकर रख दी है। पंचायतीराज में आरक्षण के तहत पिछड़े व दलित वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया गया है, लेकिन कैसे दबंग लोग उनको आगे नहीं आने देते इसका भी पर्दाफाश है।

उपन्यास नायिका प्रधान है। अतः स्त्री पात्रों को तवज्जो दी गयी है। रज्जो के सरपंची के चुनाव में उसकी प्रतिद्वन्द्वी लाजोदेवी का चरित्र जहाँ जुझारू स्त्री का परिचायक है, वहीं फूलकुमारी निडर होकर शिक्षा की सार्थकता सिद्ध करती है। हवेली की शीतलदेवी स्त्री सशक्तीकरण का संजीदा चरित्र है, जो स्त्री की गरिमा की रक्षार्थ अपनों से भी दो-दो हाथ करने को तत्पर है। सामन्ती परिवेश में रहकर भी वह उदारमना है।

खल चरित्र जिगरसिंह सामन्तवाद व जात्याभिमान का जीता-जागता नमूना है। उसके वर्चस्व को धराशायी करना ही लेखक का वास्तविक ध्येय है ताकि वंचित वर्गों तक लोकतन्त्र का वास्तविक सन्देश जाए ‘हम भारत के लोग’ की अवधारणा सार्थक रूप हो सके। सन्दीप बावा भ्रष्टाचार का पुंज है, जो हवेली की कठपुतली है।

लेखक ने प्रचलित लोकोक्तियों व मुहावरों के साथ मुहावरे गढ़े भी हैं, जिनसे कथावस्तु जीवन्त बन गयी है। उपन्यास की भाषा पात्रानुकूल है, जिसमें तद्भव के साथ तत्सम का समन्वय देखते ही बनता है। स्थानीय रंग व प्रकृति के नाना आयामों में कथा की बुनावट करना लेखक के सृजन की मौलिकता को दृष्टिगत करता है। बतकही शैली अन्य विशेषता है। उपन्यास में स्थान-स्थान पर प्रतीकों की सृष्टि की गयी है, जो कथावस्तु को दृढ़ता प्रदान करने के लिए उपयुक्त है।

लेखक के पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘साँप’ की तरह’ नटनी’ भी उनकी कलम की सुदृढ़ ‘रज्जो’ सिद्ध होगा, जिस पर चलना हुनरमन्द के ही बस की बात है, बशर्ते इनके साथ कोई दगा न हो।

— प्रो. (डॉ.) किशोरीलाल ‘पथिक’ वरिष्ठ चिंतक व आलोचक

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Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2025

Pulisher

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