Nayi Parampara Ki Khoj
₹150.00 ₹128.00
- Description
- Additional information
- Reviews (1)
Description
नयी परम्परा की खोज
यह पुस्तक २१ वीं सदी की बदलती हुई सभ्यता, संस्कृति और प्रकृति के द्वन्द्व का आलोचनात्मक रचाव है। इस समयावधि की सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक हलचल हिलोरों को जितनी प्रामाणिकता के साथ यहाँ प्रस्तुत किया गया है, वह बहुत महत्त्वपूर्ण और अलग है। इसमें जीवन, समाज, देश और प्रकृति को यथार्थवादी दृष्टि से देखती कविताओं की सूक्ष्म परख है। आज की हिन्दी कविताएँ किस तरह से अपने समय प्रदूषण का प्रतिकार करते हुए मानवता का महाआख्यान रच रही हैं इसे भी इस पुस्तक से समझा जा सकता है। इसमें उदारीकरण, निजीकरण, पूँजीवाद और बाजारवाद के छल-छद्म से बदलते समाज की स्पष्ट छवि देखी जा सकती है। यहाँ निराला, मुक्तिबोध, धूमिल, त्रिलोचन, केदारनाथ सिंह, अरुण कमल, मदन कश्यप आदि की कविताओं के साथ-साथ इक्कीसवीं सदी की दलित, स्त्री और आदिवासी हिन्दी कविता का गहन विवेचन और विश्लेषण प्रस्तुत है।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
लाल प्रताप –
मैं इस पुस्तक को तब पड़ा, जब मैं एम.ए. तृतीय सेमेस्टर मे था ।मेरे गुरु शिव कुमार यादवकि सर की पुस्तक है। इस पुस्तक को पड़ने के बाद 21वीं सदी की या कहे कि यह पुस्तक हमे स्वाधीन भारतीय लोकतंत्र की याद दिलती है । और 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध के बारे में स्पष्ट झलक दिखाई पड़ती हैं।