Neelanchal Chandra

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Neelanchal Chandra

Neelanchal Chandra

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Author: Sujata

Availability: 5 in stock

Pages: 287

Year: 2020

Binding: Paperback

ISBN: 9789389915501

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

नीलांचल चन्द्र

चैतन्यदेव की निष्कम्प दृष्टि जिस बिन्दु पर अटक-सी गयी है, दरअसल वह सागर किनारे है ही नहीं, वह तो भागीरथी के किनारे है। भागीरथी की भी नियति तो सागर में मिलने की ही है। वह भी तभी शान्त होती है तभी तृप्त होती है जब सागर में समाहित हो जाती है। फिर भी गंगा का अपना एक अलग महत्त्व है। हर-हर गंगे के उद्घोष से गंगा का घाट हमेशा से जयघोषित होता रहा है, गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक…। आज चैतन्यदेव की स्मृतियाँ पद्मा के जलप्रपात में आलोड़ित, अवगुण्ठित हो रही हैं। आज इन्हें बहुत याद आ रही है…गंगा के तट पर बसी अपनी जन्मभूमि नवद्वीप की और उसी नवद्वीप में रहने वाली अपनी वृद्धा जननी की, और… उसकी, जिसे स्मृति क्या मन में एक क्षण के लिए भी लाने की इजाज़त संन्यास धर्म नहीं देता पर जिसे स्मृतिलुप्त होने नहीं देता इनका मानव धर्म…। तीन साल हो गये नवद्वीप छोड़े हुए। इन तीन सालों में जाह्नवी के कितने जल बहे होंगे और सम्पूर्ण जलराशि इसी सागर में ही तो मिली होगी। फिर भी आज, सागर की जलराशि से मन अनाकर्षित हो रहा है। जैसे कोई चुम्बकीय शक्ति उधर ही खींच रही है, गंगा के उसी तट पर जहाँ छोड़ आये हैं, अपने जीवन के व्यतीत चौबीस साल की दास्ताँ । जो वहाँ के लोगों को कभी रुलाती है तो कभी हँसाती है।

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2020

Pulisher

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