Nij Ghare Pardesi

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Nij Ghare Pardesi

Nij Ghare Pardesi

200.00 170.00

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Author: Ramanika Gupta

Availability: 5 in stock

Pages: 106

Year: 2009

Binding: Hardbound

ISBN: 9788181431165

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

निज घरे परदेसी

‘‘हजारों बरसों से या कहूं सदियों से आदिवासियों को खदेड़ने का काम जारी है। उन्हें जंगलों में आदिम जीवन जीने के लिए मजबूर कर सभ्यता से दूर रखने की साजिश भी इस बीच जारी रही और जारी रहा उनका शोषण और दोहन। उनकी संस्कृति को न तो यहाँ के वासियों ने पनपने या विकसित होने दिया और न ही उसे आत्मसात कर मूलधारा में शामिल होने दिया। उल्टे हमेशा उन्हें असभ्य, आदिम या जंगली की पहचान देकर उनमें हीन भावना भरी जाती रही, जिससे इन पर उनका वर्चस्व कायम रहे। फलस्वरूप आदिवासियों के समाज का विकास ठहर-सा गया, सोच का विकास रुक गया और रुक गई उनकी संस्कृति और भाषा का विकास। परंपरा और अंधविश्वास से जुड़ा यह समाज, बस जीने की चाह के बल पर कठिन-से-कठिन परिस्थितियों का अपने कठिन श्रम से मुकाबला करता रहा दीन-दुनिया से बेखबर। लेकिन इस सबके बावजूद उसने अपनी पहचान आदिवासी के रूप में कायम रखी।

आदिवासी यानी मूल निवासी यानी भारत का मूल बाशिंदा यानी इस धरती का पुत्र जो धरती और प्रकृति के विकास के साथ ही पैदा हुआ, पनपा, बढ़ा और जवान हुआ – प्रकृति का सहयात्री और सहजीवी जो सहनशीलता की सीमा तक सहन करता पर अन्याय के विरोध में भी खड़ा हो जाता। भले उसे गूंगा बना दिया गया था। अभिव्यक्ति की ताकत नहीं थी उसके पास, पर अन्याय हद से गुजर जाने पर उसके हाथ गतिशील हो उठते। उसका सारा आक्रोश, सारा गुस्सा तीरों में भरकर बरस पड़ता। गुलेलों के पत्थरों से वह अपना प्रतिकार जाहिर करता और वापस जंगलों में तिरोहित हो जाता।

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Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2009

Pulisher

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