Nind Thi Aur Raat Thi

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Nind Thi Aur Raat Thi

Nind Thi Aur Raat Thi

350.00 280.00

In stock

350.00 280.00

Author: Savita Singh

Availability: 5 in stock

Pages: 143

Year: 2019

Binding: Hardbound

ISBN: 9788171199921

Language: Hindi

Publisher: Radhakrishna Prakashan

Description

नींद थी और रात थी

‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में एक स्तर पर जहाँ सविता सिंह के उन सरोकारों और विश्व-दृष्टि की निरन्तरता है जिनके कारण पिछले संग्रह ‘अपने जैसा जीवन’ को विपुल सराहना मिली, तो अन्य स्तरों पर उस अनूठे और स्वाभाविक विकास की अद्भुत छवियाँ भी हैं जिसकी जड़ें हमारे संश्लिष्ट यथार्थ में बसती हैं। पिछली सदी के नवें दशक में काव्य- सक्रियता की शुरुआत करनेवाली सविता सिंह की रचनाओं ने स्त्री-विमर्श के गहरे आशयों से संयुक्त सांस्कृतिक बोध के लिए हमारी भाषा में नयी जगह बनायी है और हिन्दी कविता के समकालीन सौन्दर्यशास्त्र को सम्भावना के नए इलाके में पहुँचाया है, यह कहना अतिकथन नहीं लगता क्योंकि न्याय, शक्ति और क्षमता के लिए संघर्ष करनेवाली नयी स्त्री के अनुभवों, स्वप्नों और सामथ्र्य से पूर्ण होती ये कविताएँ न सिर्फ नयी उम्मीदों की तरफ जाती हैं बल्कि एक प्रकार की सामाजिक-सांस्कृतिक क्षतिपूर्ति का भरोसा भी दिलाती हैं। ‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में आकुल यथार्थ और स्वप्नमयता का द्वंद्व है जिसकी गतिमानता हमारे समय के मानवीय मूल्यों वाले यथार्थ को विकृत करनेवाली या कि उसके रूपों को धुँधला करनेवाली ताकतों के खिलाफ बड़ी सावधानी से अपना काम करती है। ये कविताएँ काफी कुछ तोड़ती हैं, लेकिन तोडऩे के पश्चात या कई बार ज़रूरत होने पर उसके साथ-साथ ही, रचती भी चलती हैं। इस दुहरी जि़म्मेदारी वाली सक्रियता के ज़रिए सविता सिंह की कविताएँ हिन्दी जाति के सामूहिक मन का, उस मन के मर्म का, पुनर्संस्कार करती हैं—आत्मविश्वास से दीप्त विनम्रता के साथ, जिसमें दृष्टि की सफाई और उद्देश्य की दृढ़ता प्रभुतावादी सत्ताओं के वर्चस्व को ही नहीं, कई बार उनके छल भरे उदार-भाव को भी नेस्तनाबूद करने पर आमादा दीखती हैं। ‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में पीड़ा और अवसाद का भाव भी दम तोड़ता आखिरी अहसास नहीं है बल्कि अपने आवेग-संवेग से हमें आत्मा के उस सूने में ले जाता है जहाँ शायद हम कभी गये न थे और सच के वे बिम्ब पाये न थे जो अचानक खुद को वहाँ प्रकट करने लगते हैं। इन कविताओं में प्रकृति, समय के स्त्रीकरण और ऐसी ही अन्य प्रविधियों के माध्यम से अपने ‘आत्मचेतस आत्मन’ के आविष्कार की कोशिश है। ‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में स्त्री-विमर्श की तर्कशीलता का काव्यात्मक आभ्यंतर, स्त्री-अस्मिता की पीड़ा, उदग्र ऐन्द्रीयता, सान्द्रता और संघर्ष सहजता की जिस ज़मीन पर उजागर हुए हैं वह सचमुच नयी खोज और आश्वस्ति की ज़मीन है।

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Binding

Hardbound

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Publishing Year

2019

Pulisher

Language

Hindi

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