Nirala : Aatmhanta Astha
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निराला : आत्महन्ता आस्था
निराला : आत्महन्ता आस्था – दरअसल एक नये कवि-कथाकार द्वारा एक दूसरे कवि का आत्मीय विश्लेषण है। इसका एक नाम यह भी हो सकता था- ‘एक लेखक की निजी नोट-बुक में एक दूसरा लेखक’।
यह पुस्तक लेखक के उन्हीं नोट्स का क्रमबद्ध रूपान्तरण है उसके निजी आनन्द की अभिव्यक्ति है। लेकिन आनन्द की यह अभिव्यक्ति लेखक के श्रद्धा-विगलित क्षणों की उपज न होकर, उसके दिमाग की तार्किक रस-सिद्धि का परिणाम है; उसके सधे हुए सुर की झंकार है। अतः उसमें एक तर्कपूर्ण निजी शास्त्रीयता भी है। इसीलिए वह मात्र प्रशस्ति-वाचन या निन्दा नहीं है, बल्कि निराला की काव्य-ऊर्जा तक पहुँचने के लिए बनाया गया एक नया और निजी द्वार है, जिससे जागरूक पाठक और नये आलोचक एक नयी जगह से उस सिंह के दर्शन कर सकें।
जब आप इस नये द्वार से प्रवेश करेंगे- तभी समझ सकेंगे कि क्यों निराला दूसरे छायावादी कवियों से विरोधी दिशा के कवि हैं ? क्यों उनको बने-बनाये काव्य-सिद्धान्तों में ‘फिट-इन’ नहीं किया जा सकता ? क्यों उनकी रचनात्मकता का अध्ययन करने के लिये काल-क्रम का आधार बेमानी ठहरता है ? तब आप उस अँधेरी गुप्ता में बैठी, उन जलती आँखों के सान्द्र प्रकाश का साक्षात्कार कर पायेंगे। इसी साक्षात्कार के लिए प्रस्तुत है यह पुस्तक – निराला : आत्महन्ता आस्था।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2009 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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