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Nishiddh

Nishiddh

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Author: Taslima Nasrin

Availability: 4 in stock

Pages: 272

Year: 2017

Binding: Paperback

ISBN: 9789387409637

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

अनुक्रम
उत्सर्ग 7
बंगाली होने पर गर्व करने की कोई बात नहीं है 18
सुनील लेखक तो बड़े थे पर मनुष्य नहीं 25
पुरुषतन्त्र के रोगों के इलाज 29
पुरुषतन्त्र के सम्राट हुमायूँ अहमद 36
सबसे प्राचीन अत्याचार 42
बांग्लादेश का विजय दिवस 48
क़यामत 50
सामूहिक बलात्कार और जनता का रोष 53
नाबालिग का बलात्कार 58
पीसफुल डैथ 62
कलकत्ता पर शासन कर रहे हैं कट्टरपन्थी लोग 64
वे दिन 66
बर्बरता को एक बार बढ़ावा दिया कि मरे 69
है दुख, है मृत्यु 72
विवाह की कोई ज़रूरत है क्या ? 76
बांग्लादेश-1 85
बांग्लादेश-2 89
‘नववर्ष’ का उत्सव दोनों बंगाल में एक ही दिन हो 91
कहानी छोटे भैया की 96
लिंग-सूत्र 109
प्रेम-व्रेम 120
दो-चार चाहतें 125
कथोपकथन 130
रोज़मर्रा की साधारण कविता 150
जीवन का पचासवाँ वर्ष 153
प्रश्नोत्तर 160
औरत जात तो इमली जैसी है 172
मोगरे का पौधा आँगन में 180
डायरी 184
रफ़ कॉपी 188
ब्रह्मपुत्र के किनारे 190
बंगालियों का बुर्क़ा 193
सीधा-सादा साक्षात्कार 199
मीडिया और मिडिल क्लास मीडियोकर 210
अमेरिका का बंग सम्मेलन 220
पुंपूजा 223
‘देश’ का दरअसल मतलब क्‍या है? 228
बाबा 233
सेक्सब्वॉय 238
बलात्कार के लिए कौन जिम्मेदार? 248
फॉँसी-विरोधी देश क़ादिर मुल्ला की फाँसी की समालोचना क्यों कर रहे हैं ? 254
नारी यौनवस्तु नहीं है 258
गणतन्त्र की करुण दशा 264
निषिद्ध 268

उत्सर्ग

सच बोलने के अपराध में जिनकी किताबें ‘निषिद्ध’ की जाती हैं, जिन्हें कारावास का दण्ड मिलता है, जिनको निर्वासित किया जाता है, जिनको मार डाला जाता है…

यह लड़ाई पूर्व के साथ पश्चिम की नहीं है

‘पश्चिम का नारीवाद’ तो क्या पूर्व के नारीवाद के बारे में भी मेरी कोई धारणा नहीं थी। ये सब न जानते हुए भी बचपन से ही परिवार और समाज के अनेक आदेश, उपदेश, बहुत-सी बाधा-निषेधों के बारे में मैंने सवाल उठाये हैं। जब मुझे बाहर वाले मैदान में खेलने से मना किया जाता था, लेकिन मेरे भाइयों को खेलने दिया जाता था, मासिक धर्म के समय जब मुझे ‘अपवित्र’ कहा जाता था, और कहा जाता था कि मैं बड़ी हो गयी हूँ, एवं काले बुर्क़े से ख़ुद को सिर से पैर तक ढक कर बाहर निकलूँ-इस पर मैंने प्रश्न ही किया है-माना नहीं। सड़क पर चलते वक़्त जब अनजान लड़के मुझ पर गालियों से वार करते, ओढ़नी छीन लेते, स्तन मसल देते, मैंने प्रतिवाद किया है। घर-घर में जब देखा कि पति पत्नियों को पीट रहे हैं, बेटी को जन्म देने के बाद स्त्रियाँ डर के रो रही हैं, मैं सह नहीं पायी। बलात्कार से पीड़ित लड़कियों के शर्मसार चेहरों को देखकर पीड़ा से नीली पड़ गयी हूँ। वेश्या बनाने के लिए एक शहर से दूसरे शहर, एक देश से दूसरे देश में स्त्रियों की तस्करी की खबर सुनकर रोयी हूँ। एक मुट्ठी चावल जुटाने के लिए पतिताओं के मुहल्लों में लड़कियों को भयंकर यौन-अत्याचारों को भुगतना पड़ रहा है, पुरुष चार-चार लड़कियों से शादी करके उन्हें घरों की दासी बना रहे हैं, वे सिर्फ़ इसीलिए उत्तराधिकार से वंचित हो रही हैं क्योंकि वे लड़की होकर जन्मी हैं। मैं यह मान नहीं पायी। जब देखती थी, घर से दो क़दम बाहर रखे नहीं कि उन्हें ‘जात बाहर’ करने की धमकियाँ मिल रही हैं। ‘गैर-मर्द’ को प्यार करने के अपराध की वजह से उन्हें जलाकर मारा जा रहा है-आँगन में गड्ढा खोदकर उसमें लड़कियों को डालकर पत्थर से मारा जा रहा है, मैं चीखती थी।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2017

Pulisher

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