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Description
निष्कवच
पिछले दो दशकों में हिन्दी कथा-लेखन के क्षेत्र में अपनी महत्त्वपूर्ण पहचान बनानेवाली लेखिकाओं में अग्रणी राजी सेठ की नवीनतम औपन्यासिक कृति है ‘निष्कवच’।
‘निष्कवच’ में मूल्यों की डगमगाहट में अपने मूल से उखड़ी युवा पीढ़ी की मानसिकता में से उभरते दो वृत्तान्त हैं। यह दो अलग-अलग कथाएँ हैं, पर नहीं भी हैं। दोनों वृत्तान्तों में केन्द्रीय पात्रों के निष्कवच यथार्थ के सामने पटक दिये जाने का एक साझा कालगत और परिवेशगत रिश्ता है। यहाँ इनके अपने दर्द हैं, अपने तर्क, ज़िन्दगी से निपटने के अपने आदेश निर्देश हैं। कहना न होगा कि इनमें जो असुरक्षा और बेचैनी है वह अब तक अनदेखी रहती आयी है, क्योंकि हमारी सोच वयस्क पीढ़ी की संवेदनाओं पर झुकी हुई है। दरअसल उनकी बेख़बर करवटों तले बहुत से नाज़ुक आवेग पिसते आये हैं।
‘निष्कवच’ के दोनों वृत्तान्तों के पात्रों का ऐसा जूझना कहीं-न-कहीं मूल्यों के संक्रमण की गवाही भी देता है। जिन मान्यताओं से अब तक काम चलता रहा है, अब नहीं चल रहा। एक स्निग्ध सुरक्षित संसार की तलाश पिछले मूल्यों को ध्वस्त ज़रूर करती है, पर एक नया जुझारू साहस जुटाने के लिए सम्बद्ध भी होती है। ज़ाहिर है, परिवेश में पनप रहे इन संघर्षों का समाज को तो अभ्यस्त होना ही होना है।…
राजी सेठ की यह नवीनतम कथाकृति अपने पूरे वैचारिक साहस के साथ जीवन और परिवेश के यथार्थ की एक सशक्त एवं सार्थक अभिव्यक्ति है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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