Pablo Neruda Kavita Sanchayan

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Pablo Neruda Kavita Sanchayan

Pablo Neruda Kavita Sanchayan

400.00 399.00

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400.00 399.00

Author: Chandrabali Singh

Availability: 5 in stock

Pages: 312

Year: 2023

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126018369

Language: Hindi

Publisher: Sahitya Academy

Description

पाब्लो नेरूदा कविता संचयन

पाब्लो नेरूदा की कृतियों में आइला नेग्रा, ह्वेयर द रेन इज बोर्न, द मून इन द लेबिरिन्थ क्रूएल, द हंटर आफ्टर रूट्स क्रिटिकल सोनाटा, और उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ट्वेन्टी लव पोएम्स एंड द सांग ऑफ़ डेस्पेयर की करोड़ों प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी लगभग सभी रचनाएँ विश्व की बीस से भी अधिक प्रमुख भाषाओं में अनूदित हो चुकी है। एक यशस्वी कवि के तौर पर अपने पाठकों के बीच पर्याप्त समादृत हो चुके नेरूदा के नौ काव्य-संग्रह उनके मरणोपरान्त प्रकाशित हुए और हाथोंहाथ बिक गए।

पाब्लो नेरूदा का लक्ष्य था, स्पैनिश कविता को उन्नीसवीं शताब्दी की साहित्यिक आलोचनाओं से निकालकर उसे अकृत्रिम पहचान देना और साथ ही बीसवीं शताब्दी की सुपरिचित लयात्मक शैली में स्थापित करना। उन्होंने अपनी मृत्यु के एकदम पहले लिखे एक संस्मरण में स्वयं को इस बात का श्रेय भी दिया कि उन्होंने अपने पुनर्संधान द्वारा कविता को सम्माननीय स्थान दिलवाया और विश्व कविता के समक्ष निश्चय ही एक नया प्रतिमान प्रस्तुत किया। उनकी कृतियाँ एक ओर जहाँ महाद्वीपों के स्त्री-पुरुषों द्वारा व्यक्त की गई स्थानीय आकांक्षाओं और उनसे जुड़ी नियति का सच्चा प्रतिनिधित्व करती हैं वहीं दूसरी ओर समस्त विश्व की मानवीय संवेदनाओं का सम्मान करती हैं-क्योंकि कोई भी सच्ची कृति प्रदत्त और प्राप्तव्य विश्व की अनदेखी नहीं कर सकती।

प्रस्तुत काव्य संचयन पाब्लो नेरूदा के जन्मशती वर्ष में साहित्य अकादेमी की विनम्र श्रद्धांजलि है

 

पृथ्वी का कवि पाब्लो नेरूदा

पाब्लो नेरुदा की कविताओं में यह हिन्दी संचयन कवि की तीसवीं बरसी पर एक विनम्र श्रद्धांजलि है और जन्मशती के उपलक्ष्य में अग्रिम उपहार भी। ऐसे काव्यात्मक स्तबक के लिए हिन्दी जगत अपने वरिष्ठ जनवादी समालोचक चन्द्रबली सिंह के प्रति कृतज्ञ रहेगा।

नेरुदा मेरे भी प्रिय कवि हैं और उनकी कविताओं का हिन्दी अनुवाद करनेवाले डॉ. चन्द्रबली सिंह तो मेरे आदरणीय अग्रज ही हैं, इसलिए यहाँ कुछ कहने की  हिमाकत कर रहा हूँ, वरना स्वयं अनुवादक की विस्तृत भूमिका के बाद कुछ भी कहना ग़ैरज़रूरी है। सबसे पहले तो यही है कि इस पुस्तक के प्रकाशन पर व्यक्तित्व रूप से मुझे जो आत्मसंतोष हुआ वह स्वयं अपनी किसी पुस्तक के प्रकाशन के समय भी नहीं हुआ। कारण यह है कि अनुवाद के उस कठिन जीवन-संघर्ष और आत्मसंघर्ष की गहरी पीड़ा को कुछ-कुछ निकट से देखने का मुझे अवसर मिला है। कोई भी दूसरा व्यक्ति उस संघर्ष में टूटकर बिखर सकता था। शायद यह अनुवाद कर्म की संजीवनी ही है जिसने उन्हें बचाए रखा और आज वे अपनी आँखों अपनी अनवरत साधना को फलीभूत देखने की स्थिति में हैं। वे पक्के परिपूर्णतावादी हैं इतने कि अन्तिम प्रूफ़ की अवस्था तक काट-छाँट, सुधार-सँवार की ज़िद पर अड़े रहे।  मुकम्मल पांडुलिपि भी ‘किस तरह खैंच के लाया हूँ कि जी जानता है।’ कहना न होगा कि कविता-वह भी नेरुदा की कविता का अनुवाद चन्द्रबली सिंह के लिए कोई धन्धा नहीं बल्कि गहरी प्रतिबद्धता है।

‘शब्द ख़ून में पैदा होता है’ जैसा कि नेरुदा ने किसी कविता में कहा है और ‘शब्द ही ख़ून को ख़ून और ज़िन्दगी को ज़िन्दगी देते हैं। चन्द्रबली सिंह के इस भाषान्तर के बारे में भी यह बात उतनी ही सच है। उनके अनुवाद की रगों में भी ख़ून बहता दिखाई देता है जिसमें नेरूदा के ख़ून की गरमाहट है।

कुल मिलाकर, कविताओं का अनुवाद कैसा बन पड़ा है, यह तो वही बता सकते हैं जिन्होंने इस मैदान में हाथ आज़माए हैं। एक सामान्य पाठक के नाते सरसरी तौर पर फ़िलहाल मुझे यही लगता है कि स्पेनिश मूल से किए हुए अनुवादों से ये अनुवाद कई जगह हैं और अक्सर अंग्रेज़ी अनुवादों से टक्कर लेते हैं। यह ज़रूर है कि भाषा उतनी चलती हुई नहीं है बल्कि कुछ-कुछ किताबी-सी हो गई है। एक ‘माच्चु पिच्चु के शिखर’ कविता के विभिन्न हिन्दी अनुवादों की तुलना से यह स्पष्ट हो सकती है।

वैसे, ‘माच्चु पिच्चु के शिखर’ नेरुदा की कविता का शिखर भले ही हो, समूचा काव्य संसार नहीं है। इस शिखर के सम्मुख नतमस्तक मैं भी हूँ लेकिन नीचे की घाटियों में ऐसी अनेक जगह हैं। जो कहीं अधिक रम्य और मनोज्ञ हैं। यह विविधता और बहुलता ही नेरुदा की नेरुदा की कविता की प्रकृति है। नेरुदा इतने स्वरों और शैलियों में बोलते हैं कि उनकी कविता को किसी एक साँचे में कसना मुश्किल है। इस तरह ‘नेरुदावाद’ के पहले दुश्मन तो नेरुदा स्वयं हैं।

नेरुदा ने अपनी पचास वर्षों से भी अधिक लम्बी काव्य-यात्रा में कविता को इतनी बार बदला है कि कुछ लोग उन्हें ‘कविता का पिकासो’ कहते हैं।

उनमें किसी भी चीज़ या विषय पर कविता लिखने की असाधारण क्षमता थी। उनके लिए जिसका भी वजूद हो ऐसी हर चीज़ समान रूप से सम्मान के योग्य है और इस नाते वह कविता का विषय भी हो सकती है। कोई चाहे तो इसे कविता का विलक्षण ‘लोकतंत्र’ भी कह सकता है।

इसलिए नेरुदा ऐसी अनपेक्षित जगहों में भी कविता पा जाते थे जहाँ उनकी कोई सम्भावना नहीं होती। सम्भवतः इसी वजह से उनकी प्रत्येक कृति अप्रत्याशित की तरह आती थी। अपनी कविता में वे अक्सर ‘काल्पनिक’ और ‘वास्तविक’ के भेद को इतनी सहजता से मिटा देते हैं कि एक अलौकिक काव्यलोक निर्मित हो जाता है और आगे चलकर गार्सिया मारखेस ने यही काम ‘एकान्तवास के सौ साल’ नामक उपन्यास में किया तो उसे ‘जादुई यथार्थवाद’ का नाम दिया गया। कहना न होगा, इस जादुई यथार्थवाद का प्रयोग नेरुदा पहले ही कर चुके थे और वह भी कविता में। पर 1925 की लिखी उनकी प्रसिद्ध कविता ‘घूमते हुए’ को देखें तो उसमें परस्पर विरोधी और बेमेल बिम्ब इतनी तेज़ रफ़्तार से एक-के-बाद-एक आते हैं कि चकित रह जाना पड़ता है। कविता शुरू होती है इस तरह ‘ऐसा है कि मैं आदमी होने से थक गया हूँ’ और फिर कविता भी घूमते हुए आदमी की तरह ही घूमती रहती है।

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Hardbound

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2023

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