Pachchis Baras Pachchis Kahaniyan

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Pachchis Baras Pachchis Kahaniyan

Pachchis Baras Pachchis Kahaniyan

750.00 650.00

Out of stock

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Author: Rajendra Yadav

Availability: Out of stock

Pages: 376

Year: 2011

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126721160

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

पच्चीस बरस पच्चीस कहानियाँ

पच्चीस साल। एक सदी का चौथाई हिस्सा। हर साल में बारह अंक। हर अंक में औसतन छः या सात कहानियां। मानकर चलें कि ‘हंस’ में छपने के लिए चुने जाने का मतलब ही किसी भी कहानी के लिए संकलन योग्य होना है और कायदे से बारह-पंद्रह कहानियों का एक सालाना संकलन हर बरस छापा जा सकता है। कुल मिलाकर तकरीबन 2100 कहानियों में से बार-बार के सोच-विचार के बाद 136 कहानियां सूचीबद्ध की गईं।

‘हंस’ के भीतर से साथियों के सुझाव भी तरह-तरह के थे। पाठकों की वोटिंग से, सुधी पाठकों या लेखकों के सुझाव से, लेखकों के अपने अनुरोध की रक्षा से, एक चयन-समिति की नियुक्ति और सम्मिलित चयन से, वगैरह। लेकिन ये सभी चुनाव एक निश्चित परियोजना की बजाय यादृच्छिक किस्म का घालमेल ही बनकर रह जा सकते थे। यहां अनुसूचित लगभग हर कहानी अपने आप में एक प्रतिमान कही जा सकती है।

– भूमिका से

गैर सरकारी संगठन स्थापना, प्रबंधन और परियोजनायें भारत सहित पूरे संसार में गैर सरकारी संगठनों का एक आन्दोलन ही इन दिनों सक्रिय है। इस माध्यम से सजग नागरिकों के द्वारा अपने समुदाय और समाज के कल्याण के लिए कार्य करने में एक इतिहास ही रच दिया गया है। पर गैर सरकारी संगठन का निर्माण कर लेना जितना सरल है, उसका निर्वाह करना उसकी तुलना में कहीं अधिक जटिल है। सामान्य तौर पर सरकारें गैर सरकारी संगठनों के साथ काम करने को उत्सुक रहती हैं, परन्तु भारत जैसे देश में नौकरशाही इनसे अप्रसन्न ही बनी रहती है। राजनैतिक प्रतिरोध भी कुछ कम नहीं होता। तब भी एक बेहतर सोच लेकर चलने वाले लोगों के लिए काम करने और नतीजे निकाल लाने की सम्भावना कुछ कम नहीं है। आखिर वे कौन से तत्त्व हैं, जो एक समर्पित गैर सरकारी संगठन की वास्तविक पूँजी होते हैं। ऐसे ही सवालों से जूझती है यह पुस्तक।

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Hardbound

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Publishing Year

2011

Pulisher

Language

Hindi

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