Padosi

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Padosi

Padosi

90.00 85.00

In stock

90.00 85.00

Author: Gurudutt

Availability: 4 in stock

Pages: 216

Year: 1998

Binding: Hardbound

ISBN: 0

Language: Hindi

Publisher: Hindi Sahitya Sadan

Description

पड़ोसी

प्रथम अध्याय

1

लखनऊ से बनारस के लिए पैसेंजर गाड़ी प्रातः आठ बजे छूटती थी। दिसम्बर के महीने में क्रिसमस की छुट्टियों में पूर्व की ओर जा रहे विद्यार्थियों को वह गाड़ी सबसे उपयुक्त रहती थी। उस गाड़ी से जाने पर स्टेशनों से दूर गाँवों को जाने वालों को दिन रहते घर पहुँचने का सुभीता रहता था। यही कारण था कि चौबीस दिसम्बर के प्रातःकाल भारी संख्या में लड़के अपना-अपना सामान उठाए स्टेशन के मुख्य द्वार से उस प्लेटफार्म को जाते दिखाई दिए जिस पर बनारस की गाड़ी खड़ी थी।

प्रायः सब स्कूलों और कॉलेजों के विद्यार्थी थे और छोटी-बड़ी सब श्रेणियों में पढ़नेवाले थे। रेल के थर्ड क्लास के और इंटरक्लास के विद्यार्थीं भारी संख्या में थे। कुछ सैकण्ड क्लास में यात्रा करनेवाले भी थे।

रेल के कर्मचारी समझ गए थे कि विद्यार्थी छुट्टियों पर घर जा रहे हैं। वे देख रहे थे कि कोई जाने वाला रह न जाए। इस कारण उस दिन गाड़ी दस मिनट देरी से छोड़ी जा रही थी।

इस पर भी जब गाड़ी सीटी बजा रही थी, एक विद्यार्थी प्लेटफॉर्म नम्बर सात की ओर अपना अटैची-केस हाथ में लटकाए हुए भागा चला आता दिखाई दिया। गार्ड सीटी मुख में रखे बजाते-बजाते रुक गया।

विद्यार्थी हांफता हुआ गार्ड के समीप से गुज़रा तो गार्ड ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘जल्दी करो बाबू साहब ! आज आप लोगों के लिए खास रियायत हो रही है।’’

विद्यार्थी ने गार्ड के समीप खड़े हो घूमकर पीछे को देखा। इस पर तो गार्ड को कुछ क्रोध चढ़ आया। उसने कह दिया, ‘‘तुमको जाना नहीं है क्या ?’’ और इतना कहकर उसने सीटी बजा दी।

विद्यार्थी के मुख से निकल गया थैंक्यू।’’ और वह भागकर सामने खड़े फर्स्ट क्लास के डिब्बे में सवार हो गया। इस डिब्बे में एक यात्री पहले बैठा था। उसने विद्यार्थी को हांफते हुए दरवाज़े के समीप खड़े बाहर को झाँकते देखा तो कह दिया, ‘‘बैठ जाओ भाई ! क्या कुछ पीछे छूट गया है ?’’

‘‘जी।’’ उसका उत्तर था। गाड़ी चल पड़ी थी और उस समय प्लेटफॉर्म से बाहर निकल रही थी। लड़का अभी भी पीछे लालच-भरी दृष्टि से देख रहा था। सहयात्री ने पुनः लड़के से पूछ लिया, ‘‘क्या कुछ छूट गया है ?’’

‘‘एक साथी था।’’

‘‘कहाँ रह गया है ?’’

‘‘उसके पास सामान था। कुली मिला नहीं और स्वयं वह उठा नहीं सका, इस कारण वह प्लेटफॉर्म नम्बर एक पर ही खड़ा है।’’

‘‘उसे जल्दी आना चाहिए था।’’

‘‘कुछ लाभ न होता।’’

‘‘होता क्यों नहीं ? जल्दी आने से कुली मिल जाता। यदि न भी मिलता तो तुम दोनों मिलकर कई बार में सब सामान ले आते।’’

लड़का इस समय सहयात्री के समीप बैठ गया था। वह यात्री की युक्ति को समझ रहा था और समय पर न आ सकने का दोष दूसरे पर डालने के विचार से कहने लगा, ‘‘ऐसा हो नहीं सकता था।’’e.

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Hardbound

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Language

Hindi

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Publishing Year

1998

Pulisher

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