Pagla Ghora

-17%

Pagla Ghora

Pagla Ghora

150.00 125.00

In stock

150.00 125.00

Author: Badal Sarkar

Availability: 5 in stock

Pages: 120

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9788126726202

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

पगला घोड़ा

सुप्रसिद्ध नाटककार बादल सरकार की यह कृति बांग्ला और हिंदी दोनों भाषाओं में अनेक बार मंचस्थ हो चुकी हैं। बांग्ला में शम्भू मित्र (बहुरूपी, कलकत्ता) और हिंदी में श्यामानंद जालान (अनामिका,कलकत्ता), सत्यदेव दुबे (थियेटर यूनिट, बम्बई) तथा टी.पी. जैन (अभियान, दिल्ली) ने इसे प्रस्तुत किया। गाँव का निर्जन श्मशान, कुत्ते के रोने की आवाज, धू-धू करती चिता और शव को जलाने के लिए आए चार व्यक्ति-इन्हें लेकर नाटक का प्रारंभ होता है। हठात एक पांचवां व्यक्ति भी उपस्थित हो जाता है-जलती हुई चिता से उठकर आई लड़की, जिसने किसी का प्रेम न पाने की व्यथा को सहने में असमर्थ होकर आत्महत्या कर ली थी और जिसके शव को जलाने के लिए मोहल्ले के ये चार व्यक्ति उदारतापूर्वक राजी हो गए थे। आत्महत्या करने वाली लड़की के जीवन की घटनाओं की चर्चा करते हुए एक-एक करके चरों अपने अतीत की घटनाओं की और उन्मुख होते हैं, उन लड़कियों के, उप घटनाओं के बारे में सोचने को बाध्य होते हैं जो उनके जीवन में आई थीं और जिनका दुखद अवसान उनके ही अन्याय-अविचार के कारन हुआ था। किन्तु पगला घोडा में नाटककार का उद्देश्य न तो शमशान की बीभत्सता के चित्रण द्वारा बीभत्सा रस की सृष्टि करना है और न ही अपराध-बोध का चित्रण।

बादल बाबू के शब्दों में यह ‘मिष्टि प्रेमेर गल्प’ अर्थात ‘मधुर प्रेम-कहानी’ है। जलती चिता से उठकर आई लड़की अपने अशरीरी अस्तित्व को छोड़ मूर्त हो उठती है और न केवल स्वयं उपस्थित होती है वरन उन छातों को कुरेद-कुरेदकर उन्हें उन क्षणों को पुनः जीने के लिए प्रेरित करती है जो उनके प्रेम-प्रसंगों में महत्त्वपूर्ण रहे हैं। अंत में गिलास में मिलाए हुए विष को गिरते हुए कार्तिक का यह कथन कि ‘जीवित रहने से सब-कुछ संभव हो सकता है’ – नाटककार की जीवन के प्रति आस्था को पुष्ट करता है।

Additional information

ISBN

Authors

Binding

Paperback

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

Reviews

There are no reviews yet.


Be the first to review “Pagla Ghora”

You've just added this product to the cart: