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Description
इस उपन्यास की पृष्ठभूमि में भारतीय समाज का वह सीमान्त इलाका है जहाँ के बच्चों की शिक्षा सिनेमा–हॉलों, गैरेजों और चाय–पान की गुमटियों में होती है, जिन्हें भूगोल का ज्ञान ट्रक चालकों से, इंजीनियरिंग का ज्ञान गैरेजों में खटकर, ड्रेस डिजाइनिंग का हुनर दर्जी की दुकान से और ब्यूटीशियन का डिप्लोमा नाई की दुकान से मिलता है । यूनुस इसी धरती पर उगा हुआ एक पौधा है, जिसे अपने लिए एक पहचान की तलाश है। लेकिन उसके साथ चिपकी हुई एक पहचान उसका मुसलमान होना भी है, पर वह उसे हर कहीं उजागर नहीं करता, कम–से–कम अपने सलीम भाई की तरह तो नहीं जिसे गुजरात में ऑटो में बैठे–बैठे जिन्दा जला दिया गया उसके लिए उससे ज्यादा मायने अपनी वह छवि रखती है जिसे वह सनूबर की आँखों में देखता है।
सनूबर जो उसकी महबूबा है और जो उसे मुहम्मद यूनुस नहीं, अंग्रेजी में संक्षेप करके ‘एम–वाई’ अर्थात् ‘माई’ बुलाती है। एक आदमी की पहचान क्या होती है उसका धर्म, उसका पेशा या उसका हृदय ? यह उपन्यास अपने नायक यूनुस के माध्यम से यही सवाल हमारे सामने रखता है। यूनुस निम्न मध्यवर्गीय भारतीय मुस्लिम समाज का एक प्रतिनिधि चरित्र है, और अपने बनने की प्रक्रिया में हमें अपनी स्मृतियों के साथ उस पूरे परिदृश्य से परिचित कराता है जिसमें साम्प्रदायिक ताकतों की राष्ट्रीय राजनीति में घुल–मिल जाने के बाद, आज भारत का गरीब मुस्लिम तबका रह रहा है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2009 |
Pulisher |
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