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Description
पारा पारा
समाज की, प्रेम की, और देह की एक-दूसरे को काटती नैतिकताओं के द्वन्द्व में उलझा एक मन है जो फ़ौरी राहत के लिए अपने अतीत के सफ़र पर निकल पड़ता है। अतीत की नीम रौशन गलियों में जहाँ अपने-अपने वक़्तों को जीते पुरखे हैं, पुरखिनें हैं, उनके रिश्ते हैं, सुख-दुख हैं, उनका वैभव है, एक बड़ी दुनिया जो अब तुड़ी-मुड़ी पुरानी तस्वीरों और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आती स्मृतियों में जीवित है।
अपने विवाहित जीवन में आई प्रेम की ताज़ा और जीवन्त हिलोर में बँधी हीरा सिर्फ़ प्रेम की सम्पूर्णता को जानती है, और उसे उसी निष्पाप भाव से जीना चाहती है; लेकिन जीवन की सुपरिभाषित सरणियों में न उसकी कामना अँट पाती है, न उसका प्रेम। नतीजा ख़ुद की और अपने सुकून की तलाश में भीतर और बाहर का सफ़र जो अपने साथ हमें भी एक दूसरी ही दुनिया में ले जाता है; जो परिवार अब दुनिया के अलग-अलग शहरों में फैला हुआ है, उसकी गहरी जड़ों को छूने की कोशिश ताकि कहीं से अपने आज के खंड-खंड सच को समझने का कोई सूत्र मिल जाए। वह सुकून मिल जाए जो किसी भी साँस लेती देह को चाहिए।
प्रत्यक्षा का यह नया उपन्यास स्मृति और इच्छा की इसी बुनत में एक सघन पाठ की रचना करता है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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