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Description
परख के पंख
प्रयाग शुक्ल के ये समीक्षा लेख और वृत्तान्त, एक ओर जहाँ उनके सहज–सरस गद्य से हमारा परिचय एक बार फिर कराते हैं, वहीं वे सूक्ष्म, संवेदनशील ढंग से कृतियों और रचनाकारों से की गयी एक बतकही का पता देते हैं। यह ‘बतकही’, और आत्मीय ढंग से की गयी कृतियों की परख, की इन समीक्षा लेखों और वृत्तान्तों की विशेषता है। साहित्य के सर्जनात्मक रूपों से एक लेखक–पाठक के नाते उनका जो आत्मीय सम्बन्ध रहा है, वह भी इन लेखों में भी प्रकट है। और साहित्य ही क्यों, अन्य सभी कलाओं, नृत्य, नाटक, फिल्म, संगीत से उनका जो नाता रहा है, एक भावक के रूप में, वह भी इन समीक्षा लेखों में किसी–न–किसी रूप में दृष्टव्य है। इसीलिए निरा साहित्यिक सन्दर्भों में देखी, और की गयी समीक्षा/आलोचना से, प्रयाग शुक्ल की ‘समीक्षा’/ परख बहुत अलग दिखायी पड़ती है, और अपने आस्वाद से वह हमें सहज ही आनन्दित नहीं करती है। उनका विवेचनात्मक लेखन आज से कोई पचास–पचपन वर्ष पूर्व आरम्भ हुआ था, और ‘दिनमान’, ‘आलोचना’, ‘जनसत्ता’, ‘इण्डिया टुडे’, ‘आउट लुक’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ आदि पत्र–पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर, वह पाठकों को रुचता रहा है। इन्हीं पत्र–पत्रिकाओं में प्रकाशित, उनकी ‘परख’ सामग्री से चुनी गयी यह सामग्री, ही ‘परख के पंख’ में संकलित है और हमें पूरी उम्मीद है कि यह सामग्री नये–पुराने पाठकों के मन में जहाँ कई साहित्यिक स्मृतियाँ जगायेगी, वहीं सूक्ष्मदर्शी, स्वप्नशील कृतियों की एक परख–बानगी देती हुई, उनसे एक नया रिश्ता बनायेगी, या ‘नये सिरे से’ एक रिश्ता बनायेगी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2020 |
Pulisher |
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