Parikrama
Parikrama
₹100.00 ₹85.00
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Author: Vijaydan Detha
Pages: 76
Year: 2015
Binding: Paperback
ISBN: 9789350729472
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
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Description
परिक्रमा
विजयदान देथा के बारे में यह तथ्य भी जानना कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि अधिकांश कहानियाँ मूलतः राजस्थानी में लिखी गयी थीं, सबसे पहले–‘बातारी फुलवारी’ नाम से उनका विशाल कथा ग्रन्थ प्रकाशित हुआ था (तेरह खंडों में)। बाद में जब उनकी कहानियों के दो संग्रह हिन्दी में प्रकाशित हुए तो पूरा हिन्दी संसार चौंक पड़ा क्योंकि इस शैली और भाषा में कहानी लिखने की कोई परम्परा तथा पद्धति न केवल हिन्दी में नहीं थी बल्कि किसी भी भारतीय भाषा में नहीं थी।…. “तुम तो छुपे हुए ही ठीक हो। …तुम्हारी कहानियाँ शहरी जानवरों तक पहुँच गयीं तो वे कुत्तों की तरह उन पर टूट पड़ेंगे। …गिद्ध हैं नोच खाएँगे। तुम्हारी नम्रता है कि तुमने अपने रत्नों को गाँव की झीनी धूल से ढँक रखा है।” हुआ भी यही, अपनी ही एक कहानी के दलित पात्र की तरह-जिसने जब देखा कि उसके द्वारा उपजाये। खीरे में बीज की जगह ‘कंकड़-पत्थर’ भरे हैं तो उसने उन्हें घर के एक कोने में फेंक दिया, किन्तु बाद में एक व्यापारी की निगाह उन पर पड़ी तो उसकी आँखें चौंधियाँ गयीं, क्योंकि वे कंकड़-पत्थर नहीं हीरे थे। विजयदान देथा के साथ भी यही हुआ। उनकी कहानियाँ अनूदित होकर जब हिन्दी में आयीं तो हिन्दी संसार की आँखें चौंधियाँ गयीं।
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher |
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