Parinde Ka Intazar Sa Kuch
Parinde Ka Intazar Sa Kuch
₹325.00 ₹255.00
₹325.00 ₹255.00
Author: Neelakshi Singh
Pages: 256
Year: 2022
Binding: Paperback
ISBN: 9789395160063
Language: Hindi
Publisher: Setu Prakashan
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Description
परिन्दे का इन्तजार सा कुछ
नीलाक्षी सिंह हिन्दी के विशिष्ट कहानीकारों में हैं। वे अपने समय की संवेदना को मौलिक ढंग से परखते हुए उसे उसकी बेलौस सान्द्रता के साथ अभिव्यक्त करती हैं। वे उन विरल रचनाकारों में हैं जिन्होंने ‘ग्लोबल’ और ‘लोकल’ के सम्बन्ध एवं संघात को सफलतापूर्वक अपनी कहानियों में पिरोया है। युवा-सम्बन्ध, प्रेम, परिवार, बाजार, साम्प्रदायिकता को विषय बनाते हुए कहीं भी उनमें सेकण्डरी इमेजिनेशन नहीं झलकता है। हमारे निकट अतीत से नितान्त वर्तमान तक बाजार तथा धर्म ने जिस तरह आमूल रूप से जीवन को बदल दिया है; लालसा और भोग का विकट विस्तार हुआ है; हर सम्बन्ध विषम जद्दोजहद में फँस गया है उसकी फर्स्ट हैण्ड अभिव्यक्ति नीलाक्षी के यहाँ है। भूमण्डलीकरण को विषय बनाती उनकी ‘प्रतियोगी’ शीर्षक कहानी क्लासिक की ऊँचाई को छूती है। इस कहानी को जहाँ अभिधा में पढ़ा जा सकता है वहीं समय के मेटाफर के रूप में भी। कहानी में नये आक्रामक बाजार के प्रतिनिधि ‘फास्ट फूड’ के बरअक्स जलेबी, कचरी और पिअजुआ स्थानीय संस्कृति और प्रतिरोध का मेटाफर बन जाते हैं। इस भूमण्डलवादी बाजार की जद में वस्तु की सत्ता ही नहीं नितान्त मानवीय भावनात्मक सत्ता भी है। दो मूल्य दृष्टियों के बीच बँट गये दम्पति यहाँ परस्परता खोकर प्रतियोगी बन जाते हैं।
नीलाक्षी की कहानियाँ मनुष्यता के पक्ष में एक अपील हैं। निरन्तर तिरोहित हो रही मानवीय संवेदना उनकी कहानियों का केन्द्रीय सरोकार है। ‘एक था बुझवन…’, ‘उस शहर में चार लोग रहते थे’, ‘परिन्दे का इन्तज़ार सा कुछ’ आदि कहानियाँ इसी तिरोहित हो रही मानवीयता को परिवार, समाज, सम्प्रदाय आदि के विभिन्न स्तरों पर प्रस्तुत करती हैं। कहीं निजी लालच में परिवार टूट रहा है, बुजुर्ग घर के बाहर ठेले जा रहे हैं; कहीं सामन्ती-बाजारवादी दृष्टिकोण के कारण कोमल भावनाओं पर आघात हो रहा है। धार्मिक उन्माद इंसान को विभाजित और आहत कर रहा है। प्रेम एवं सम्बन्ध के विभिन्न रूपों को नीलाक्षी ने नवेले विन्यास एवं बिम्ब में सम्भव किया है। ‘बज्जिका’ के शब्दों का सर्जनात्मक प्रयोग मूल संवेदना को अक्षुण्ण रखता है। प्रस्तुत संग्रह हमारे समकालीन संवेदनात्मक विक्षोभ का साथी एवं गवाह है।
– राजीव कुमार
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Publishing Year | 2022 |
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Pulisher |
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