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Description
पाताल भैरवी
श्री लक्ष्मीनन्दन बोरा (जन्म 1932) के बृहत् उपन्यास पाताल भैरवी का घटनाक्रम और विन्यस्त पात्रों का चरित्र-चित्रण उनके अन्य उपन्यासों से काफी अलग तरह का है। इसमें डिब्रूगढ़ से डिगबोई और उत्तर में लखीमपुर तक का रचनात्मक परिवेश समाविष्ट है। इस अंचल की विभिन्न जातियों और व्यवसायों में लगे लोगों को, विशेषतः अपराधप्रवण पाताल लोक के अंधकारमय जीवन को, लेखक ने कई वर्षों तक बड़ी बारीकी से समझने की कोशिश की है। दोनम्बरी तथा काले धन्धे और अन्य अपराधों में लिप्त कुछ लोगों की जीवन-शैली समाज के लिए उतनी ही रोचक, आकर्षक और चुनौतीपूर्ण।
उपन्यास में सहज मानवीय प्रवृत्तियाँ अपने अकृत्रिम रूप में विन्यस्त हैं जो राजनीति के अपराधीकरण को बड़ी शिद्दत से उभारती हैं। इस अंचल में जैसे-जैसे उद्योग-व्यापार बढ़ रहे हैं वैसे –वैसे लोगों की परस्पर प्रतिद्वन्द्विता में जीवन-मूल्यों की बलि चढ़ती जा रही है। फलस्वरूप सभ्यता संस्कृति में तेजी से गिरावट आ रही है। इन अप्रिय स्थितियों से एक उपन्यासकार के संवेदनशील मन को मर्मान्तक वेदना पहुँचती है। इस वेदना को मूर्त रूप मिलता है-स्रष्टा की नयी सृष्टि में, उसके सृजन मे और उसके रचनानुभव में। पाठकों को इस कृति में गतिशील वैचित्र्य और रचनात्मक विस्तार का आनन्द मिलेगा।
श्री बोरा के अन्य उपन्यास हैं गंगाचिलनीर पाखी, धान जुईर पोराहाट तथा उत्तर पुरुष एवं कहानी संग्रह हैं: गौरी रूपक, अचिन, कोयना तथा देवतार व्याधि।
एक
घटनाए तो घटती ही रहती हैं… मगर इसमे कौतुहल की बात होती है, घटना के केन्द्रबिन्दु बने व्यक्ति या उस घटना से जुड़े अन्य व्यक्तियों की प्रतिक्रिया। बस इसी को ध्यान में रखकर मैं अपने शहर के मुकुन्द की बात बता रहा हूँ आपको। यह अलग बात है कि उसके जीवन में सिर्फ़ उस अंश की कहानी सुना रहा हूँ, जिसके बारे में मुझे जानकारी है, मुझे विश्वास है कि अब तक मुकुन्द जीवन जी रहा होगा। लेकिन जब उसकी जीवन यात्रा सही मायने में शुरू हुई थी, तब उसका सम्बल क्या था ?… कुछ भी नहीं। मतलब यह कि मैं एक रंक के राजा बनने की कहानी कहने जा रहा हूँ। यह सच है, क़िस्से-कहानियों में राजा बनने से पहले तक, उस रंग के मन के सुख-दुःख या आशाओ-आकाक्षाओं की बातें नहीं होती है… न ही राजा बनते वक़्त उसकी मनोदशा का वर्णन, पर यह भी सच है कि इस कहानी के नायक, मुकुन्द को हम वैसा नायक नहीं मान सकते। मुकुन्द एक जीता-जागता व्यक्ति है, आज का इन्सान है, हमारे जैसा, हमारे ही ज़माने का इन्सान।
यही कारण है कि उसके घटना बहुल जीवन में और जीवन के विभिन्न स्तरों पर उसकी कब-क्या प्रतिक्रिया रही, इसका लेखा-जोखा आप तक पहुँचाना मेरे लिए बड़ा कठिन साध्य रहा है। मुझे बहुत सारे व्यक्तियों से संपर्क करना पड़ा, मुकुन्द के साथियों की बाते टेप करनी पडी, और तो और आई. ए. एस. अधिकारियों से अनुनयन-विनय करके सही तथ्य इकट्ठें करने पड़े। मुकुन्द की कहानी के मनकों को एक सूत्र में पिरोने में मुकुन्द से ज्यादा मदद मिली, उसकी पत्नी यशोदा से। हाँ, उसके जीवन के चरम-नाटकीय एवं संघातपूर्ण क्षणों तथा घटनाओं का सटीक विवरण जिन दो व्यक्तियों ने दिया, वे थे मुक्ता रहमान उर्फ़ देवता और बशीर….पूरा नाम बशीरुद्दीन यूसुफ़।
ये दोनों मल्लाह हैं। एक है भोजन-विलासी और दूसरा, सुरा-विलासी। मुकुन्द के अप्रत्याशित उत्थान के पहले के कुछ नाटकीय दिनों और घटनाओं का साक्षी केवल यह मल्लाहों का जोड़ा था। ये दोनों मुकुन्द की ही तरह, सहज ही मन को छू जाने वाले चरित्र हैं।
मुकिन्द की बात शुरू करने से पहले इतना बता दूँ कि वह जिस गाँव का रहने वाला है वहाँ उसकी कोई अहम भूमिका रही थी या नहीं, इस बारे में किसी को कोई खास जानकारी नहीं है, अतः उस समय के बारे मैं ज़्यादा कुछ नहीं कह सकूँगा, यह मेरी विविशता है इस कमी के बावजूद मैं यह जरूर कहूँगा, आप पूरी कहानी को अवश्य पसंद करेंगे।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2004 |
Pulisher |
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