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पाटन का प्रभुत्व
‘पाटन का प्रभुत्व’ प्रख्यात साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी की महत्वाकांक्षी उपन्यास माला ‘गुजरात गाथा’ का प्रथम पुष्प है और इतिहास प्रसिद्ध गुर्जर साम्राज्य के अन्तिम गौरवपूर्ण अध्याय को गल्प रूप में उभारता है। गुर्जर साम्राज्य के संस्थापक मूलराज सोलंकी (942-997 ई.) ने अपने यशस्वी कार्यों से अनहिलवाड़ पाटन का नाम समूचे देश में गुँजा दिया था। उन्हीं की पाँचवीं पीढ़ी में कर्णदेव (1072-1094) सत्तासीन हुआ। उसने अपनी स्वतन्त्र राजनगरी कर्णावती स्थापित की। उसका विवाह चन्द्रपुर की जैन राजकुमारी मीनल से हुआ और उससे जयदेव नाम का एक पुत्ररत्न प्राप्त हुआ, जिसे आगे चल कर सिद्धराज के विरुद से विभूषित होकर कीर्तिपताका फहरानी थी।
‘पाटन का प्रभुत्व’ के प्रथम दृश्य का उद्घाटन 1092 के उस कालखण्ड में होता है जब कर्णदेव असाध्य बीमारी से ग्रस्त होकर शैया पर मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहा है और शासन का दायित्व राजरानी मीनलदेवी की ओर से उसका जैन परामर्शदाता और महामंत्री मुंजाल मेहता वहन कर रहा है। यह समय गुर्जर साम्राज्य के लिए अत्यन्त संवेदनशील है। एक ओर आसपास के असन्तुष्ट और महत्वाकांक्षी जैन श्रावकों के हौसले बढ़े हुए हैं। वे आनन्दसरि को आगे करके अपने ही धर्म की राजमहिषी और महामन्त्री पर दबाव बनाने की फ़िराक में हैं। दूसरी ओर कर्णदेव के सौतेले भाई क्षेमराज का पुत्र देवप्रसाद आसपास के राजपूत छत्रपों का अगुआ बन कर शासनपीठ पर अधिकार जमाना चाह रहा है। इन विपरीत परिस्थितियों में महामन्त्री मुंजाल की विश्वसनीयता. दूरदर्शिता और विवेक बुद्धि से, कर्णदेव के निधन के तत्काल बाद, युवराज जयसिंह देव का राज्याभिषेक होता है और सत्तापीठ पर छाये आशंका के बादल छंट जाते हैं। यही जयसिंह देव आगे चलकर ताम्रचड़ाध्वज सिद्धराज के विरुद से गुर्जर साम्राज्य को नवजीवन देते हैं। मात्र दो वर्ष के कालखण्ड में सिमटा होने के बावजूद यह उपन्यास सत्ता के संघर्ष और उससे जुड़े दाँव-पेंचों को इतने रोमांचक ढंग से प्रस्तुत करता है कि पाठक अन्तिम पृष्ठ की अन्तिम पंक्ति से पहले छोड़ने का नाम नहीं लेता।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2016 |
Pulisher |
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