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पत्रकारिता का अंधायुग
पत्रकारिता, खासतौर पर हिंदी पत्रकारिता, आज जिस भीषण दौर से गुजर रही है वह अकल्पनीय है। समूचे मीडिया पर कॉरपोरेट ताकतों का कब्जा हो गया है और सत्ता के साथ उनका तालमेल स्थाई बनाए रखने की कोशिश में मीडिया ने जनता के पक्ष को पूरी तरह दरकिनार कर दिया है। धर्म के आधार पर सत्ताधारी पार्टी जिस तरह के ध्रुवीकरण में लगी है उसमें उसके पक्ष में जनमत तैयार करने में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने सारी हदें तोड़ दी हैं। कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका पर निगरानी रखने के उद्देश्य से निर्मित यह चौथा स्तंभ आज इतना बेलगाम हो गया है कि अब इस पर निगरानी रखने के लिए किसी और ‘स्तंभ’ की जरूरत है। पिछले कुछ वर्षों की तस्वीर देखें तो मीडिया ने धर्माधता, अल्पसंख्यकों, खासतौर पर मुसलमानों के प्रति नफरत तथा पाकिस्तान के संदर्भ में युद्धोन्माद फैलाने, भ्रामक सूचनाओं और अंधराष्ट्रवाद के जरिए समाज के एक तबके को पागल भीड़ में तब्दील करने और दलितों, महिलाओं तथा वंचित तबकों को और भी ज्यादा हाशिये पर ठेलने में सत्ताधारी पार्टी को मदद पहुँचायी है। इसका सबसे खतरनाक पहलू निरंतर बढ़ रही सांप्रदायिकता में दिखाई दे रहा है। इस संकलन के लेखक का मानना है कि आज जो स्थिति सामने है, वह आकस्मिक नहीं है बल्कि उन प्रवृत्तियों की परिणति है जो 1980 के दशक से ही मीडिया में प्रकट हो गयी थीं। आश्चर्य नहीं कि लेखक ने 1984 में ही हिंदी पत्रकारिता के ‘हिंदू पत्रकारिता’ में तब्दील हो रहे खतरे की तरफ संकेत किया था।
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केन सारो-वीवा को 10 नवंबर, 1995 को इसलिए फाँसी पर लटका दिया गया क्योंकि उन्होंने अपने इलाके की जनता को बहुराष्ट्रीय तेल कंपनी ‘शेल’ के शोषण खिलाफ संगठित किया। अदालत में दिये गये उनके बयान का यह अंश गौर करने लायक है जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘मी लॉर्ड, मैं उन लोगों में से नहीं हूँ जो ये दलील देते हुए कि सैनिक सरकारें तो दमनकारी होती ही हैं, अन्याय और उत्पीड़न का विरोध करने से अपने को बचाता रहूँ। कहीं भी सैनिक हुकूमत अकेले काम नहीं करती। उसे राजनीतिज्ञों, वकीलों, न्यायाधीशों, विद्वानों और व्यापारियों के एक गिरोह का समर्थन प्राप्त रहता है और यह गिरोह दावा करता है कि वह अपना कर्तव्य निभा रहा है। ये लोग पेशाब में तर-बतर पतलूनें पहने रहते हैं और धोने से डरते हैं। माई लॉर्ड, आज हम सभी कटघरे में खड़े हैं। हमने अपनी हरकतों से इस देश को दुर्दशा के कगार पर पहुँचा दिया है और इस देश के बच्चों का भविष्य तबाह कर दिया है।’’
– इसी पुस्तक से
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Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2020 |
Pulisher |
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