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Description
पत्ताखोर
स्वातंत्रयोत्तर भारतीय समाज में हमने जहाँ विकास और प्रगति की कई मंजिलें तय की हैं, वहीं अनेक व्याधियाँ भी अर्जित की हैं। अनेक समाजार्थिक कारणों से हम ऐसी कुछ बीमारियों से घिरे हैं जिनका कोई सिरा पकड़ में नहीं आता। युवाओं में बढ़ती नशे और ड्रग्स की लत एक ऐसी ही बीमारी है। एक तरफ समाज की रग-रग में तनाव, घुटन, कुंठा और असन्तोष व्याप रहा है, युवाओं को हर तरफ अंधी और अवरुद्ध गलियाँ नजर आ रही हैं, लगातार खुलते बाजार की चकाचौंध से मध्य और निम्नमध्यवर्ग का युवा स्तब्ध है। नतीजा भटकाव और विकृति। नशे के लिए व्यक्ति खुद जिम्मेदार है, नशे के व्यापारी जिम्मेदार हैं या हमारी सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताएँ, कहना कठिन है।
हमारे समय की सजग और सचेत लेखिका मधु कांकरिया इस उपन्यास में इन्हीं सवालों से दो-चार हो रही हैं। यह उपन्यास केवल एक कथा-भर नहीं है, बल्कि एक कथा के चौखटे में इसके जरिए नशे के पूरे समाजशास्त्र को समझने की कोशिश की गई है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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