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Description
पीतांबरा
मीरा के जीवन पर आधारित लेखक द्वारा अपनी विशिष्ट शैली में रचित एक अत्यन्त रोचक एवं प्रामाणिक उपन्यास जो आधुनिक जीवन बोध के संदर्भ में भी इस संत कवयित्री की प्रासंगिकता को गहराई से रेखांकित करता है।
लेखक के अनुसार मीरा मात्र श्री कृष्णोपासिका नहीं थी अपितु वह एक निर्भीक समाज सुधारिका भी थी जिसने आज से प्रायः पांच सौ वर्ष पूर्व ही नारी जागरण का प्रथम शंख नाद किया था।
सती प्रथा के सदृश सड़ी-गली सामाजिक कुरीतियों को दृढ़ता से नकारनेवाली कृष्णप्रिया मीरा विश्व की उन कुछेक नारियों में है जो काल की शिला पर अपने अमिट हस्ताक्षर छोड़ जाने में सफल हुई है।
इस ऐतिहासिक औपन्यासिक कृति में मीरा सम्बन्धी विविध भ्रान्तियों को सफलतापूर्वक निरस्त कर तथा उसके जीवन से जुड़े चमत्कारों को विश्वसनीय रूप में रखने का प्रयास कर लेखक ने मीरा के व्यक्तित्व और कृत्तित्व को आधुनिक पाठकों के अत्याधिक समीप लाने का स्तुत्य प्रयास किया है।
यह उपन्यास मीरा के जीवन के विविध रूपों और आयामों को अत्यन्त रोचकता से चित्रित करता है। कृष्णदीवानी मीरा पर आधारित यह उपन्यास प्रचलित भ्रान्तियों का निवारण करने के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण तथ्यों का विवरण प्रस्तुत करता है। उपन्यास में जो कुछ लिखा गया है वह इतिहास ही है जिसमें चरित्रों एवं घटनाओं को यथासम्भव सही परिप्रेक्ष्य में रखा गया है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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