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Description
पिछले दिनों
शरद जोशी की गणना हिन्दी के अग्रणी हास्य-व्यंग्यकारों में की जाती है। उनकी रचनाएँ जहाँ एक ओर हंसाती और मन को गुदगुदाती हैं, वहाँ दूसरी ओर जबरदस्त चोट भी करती हैं। समाज, शासन और राजनीति उनकी रचनाओं के विशेष रहे हैं।
‘पिछले दिनों’ शरद जोशी के ऐसे व्यंग्य लेखों का संग्रह है जो एक ओर सामाजिक स्थितियों को नई दृष्टि देते हुए सही दिशा की ओर इंगित करते हैं तो दूसरी ओर अपनी तीक्ष्णता और पैनेपन से भी पाठक को प्रभावित करते हैं। इन रचनाओं से हिन्दी साहित्य का स्तर ऊँचा हुआ है।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे !
देश के आर्थिक नंदन कानन में कैसी क्यारियाँ पनपी-संवरी हैं भ्रष्टाचार की, दिन–दूनी रात चौगुनी ! कितनी डाल, कितने पत्ते, कितने फूल और लुक-छिपकर आती कैसी मदमाती सुगंध। यह मिट्टी बड़ी उर्वरा है, शस्य श्यामल, काले करमों के लिए। दफ्तर-दफ्तर नर्सरियाँ हैं और बड़े बाग जिनके निगहबान बाबू, सुपरिंटेंडेंट, डायरेक्टर, सचिव मंत्री। जिम्मेदार पदों पर बैठे जिम्मेदार लोग, क्या कहने आई. ए. एस. एम. ए. विदेश रिटर्न आज़ादी के आंदोलन में जेल जानेवाले चरखे के कतैया गांधीजी के चेले बयालीस के जुलूस वीर, मुल्क का झंडा अपने हाथ से ऊपर चढ़ानेवाले जनता के अपने भारत मां के लाल, काल अंग्रेज़न के। कैसा खा रहे हैं रिश्वत गप-गप। ठाठ हो गए सुसरी आज़ादी मिलने के बाद। खूब फूटा है पौधा सारे देश में, पनप रहा केसर क्यारियों से कन्याकुमारी तक, राजधानियों में, जिला दफ्तर, तहसील, बी. डी. ओ. पटवारी के घर तक खूब मिलता है काले पैसे का कल्पवृक्ष पी. डब्ल्यू डी. आर. टी. ओ. चुंगी नाके, बीज गोदाम से मुंसीपाल्टी तक। सब जगह अपनी–अपनी किस्मत के टेंडर खुलते हैं, रुपया बंटता है ऊपर से नीचे, आजू-बाजू। मनुष्य मनुष्य के काम आ रहा, खा रहे हैं तो काम भी तो बना रहे हैं। कैसा नियमित मिलन है, बिलैती खुलती है कलैजी की प्लेट मंगवाई जाती है। साला कौन कहता है राष्ट्र में एकता नहीं, सभी जुटे है खा रहे हैं, कुतर-कुतर पंचवर्षीय योजना, विदेश से उधार आया रुपया। प्रोजेक्टों के सूखे पाइपों, पर ‘फाइव फाइल फाइव’ पीते बैठे हंस रहे हैं ठेकेदार, इंजीनियर, मंत्री के दौरे के लंच-डिनर का मेनू बना रहे विशेषज्ञ।
स्वास्थ्य मंत्री की बेटी के ब्याह में टेलिविज़न बगल में दाबकर लाया है दवाई कंपनी का अदना स्थानीय एजेंट। खूब मलाई कट रही है। हर सब-स्पेक्टर ने फ्लेट कटवा लिया कालोनी में। टाउन प्लानिंगवालों की मुट्ठी गर्म करने से कृषि की सस्ती ज़मीन डेवलपेंट में चली जाती है। देश का विकास हो रहा है भाई ! आदमी चांद पर पहुँच रहा हम शनिवार की रात टॉप फाइव स्टार होटल में नहीं पहुंच सकते। लानत है ऐसे मुल्क पर !
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher |
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