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प्रमेय
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के ‘बालकृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार’ से सम्मानित भगवंत अनमोल नये विषयों पर लिखने के लिए जाने जाते हैं। ज़िंदगी 50-50 और बाली उमर के बाद उनका यह तीसरा उपन्यास साइंस फ़िक्शन, दर्शन और वैचारिकता का एक अद्भुत मिश्रण है। यह एक ऐसे युवा की कहानी है जिसकी परवरिश धार्मिक माहौल में हुई है और वह प्रौद्योगिकी की पढ़ाई कर रहा है। जहाँ एक तरफ़ तकनीकी यह बताती है कि इस ब्रह्मांण में ईश्वर है ही नहीं तो दूसरी तरफ़ उसके परिवार ने बचपन से यह सिखाया है कि दुनिया की हर एक वस्तु सिर्फ़ ईश्वर की देन है। उसका मन इस द्वंद्व में फंसकर रह जाता है। इसी द्वंद्व से निकलने की छटपटाहट है प्रमेय। पढ़ाई के दौरान सूर्यांश का दूसरे मज़हब की लड़की से प्रेम हो जाता है। धार्मिक कट्टरता के कारण इस नवयुगल को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस बीच कुछ ऐसा घटित होता है, जिससे सूर्यांश का सोचने का तरीका ही बदल जाता है। इसी कथानक के आधार पर लेखक ने विज्ञान, आध्यात्म और धर्म के तर्कों के सहारे ब्रह्मांड और ईश्वर की परिकल्पना को समझने का प्रयास किया है।
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Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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