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प्रारब्ध
पुरुष की बड़ी से बड़ी कमज़ोरी समाज पचा लेता है लेकिन नारी को उसकी थोड़ी सी चूक के लिए भी पुरुष समाज उसे कठोर दण्ड देता है जबकि इसमें उसकी लिप्सा का अंश कहीं अधिक होता है। वास्तव में नारी अपने मूल अधिकारों से तो वंचित है, लेकिन सारे कर्तव्य और दायित्व उसके हिस्से मढ़ दिये गये हैं।
आशापूर्णा का मानना है कि नारी का जीवन अवरोधों और वंचना में ही कट जाता है, जिसे उसकी तपस्या कहकर हमारा समाज गौरवांवित होता है। इस विडम्बना और नारी जाति की असहायता को ही वाणी मिली है यशस्वी बांग्ला कथाकार के इस अनुपम उपन्यास में।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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