Prathna Ke Shilp Mein Nahin

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Prathna Ke Shilp Mein Nahin

Prathna Ke Shilp Mein Nahin

150.00 145.00

Out of stock

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Author: Deviprasad Mishra

Availability: Out of stock

Pages: 128

Year: 1989

Binding: Paperback

ISBN: 0

Language: Hindi

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

प्रार्थना के शिल्प में नहीं

देवी प्रसाद मिश्र के लिए १६८७ का भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार प्रस्तावित करते हुए प्रख्यात आलोचक डॉ० नामवर सिंह की संस्तुति थी कि परम्परा के साथ एक नये सम्बन्ध की स्थापना, सामाजिक सरोकार और जीवंत भाषा-संवेदना के कारण देवी प्रसाद मिश्र युवा कवियों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाते हैं।

परम्परा पाठ और यह समय दो हिस्सों में बँटी इस कविता-पुस्तक का कैनवास किसी आदिम मनुष्य की संघर्ष-कथा से लेकर १६८८ में मुफ़िलिसी और तकलीफ़ में टूटते राम गरीब तक फैला है। हिन्दी कविता में संभवतः पहली बार अतीत और समकालिकता को उनकी अविच्छिन्नता और द्वन्द्वात्मकता में आमने-सामने रखा गया है। एक विस्तृत समय-संवेदना में फैलीं ये कविताएँ भारतीय मनुष्य की उत्पीड़ा और प्रतिरोध को अद्भुत अंतरंगता, अनुभूति और इतिहासोन्मुखता के साथ व्यक्त करती हैं। अनुभूति और सहानुभूति की इतनी विस्तारधायी और सघन उपस्थिति सचमुच विरल है। दुख और दुख के कारणों की पड़ताल करतीं ये कविताएँ किसी भी दुखबाद के विरुद्ध हैं।

राज्य, सत्ता, अत्याचार, दुख, अस्तित्व, भाषा, कविता, सरोकार, नैतिकता, संघर्ष, क्रांति, परिवर्तन जैसे मुद्दों से टकरातीं देवी प्रसाद की कविताएँ शिल्प के किसी एकाश्मीय या मोनोलिथिक रूप को अस्वीकृत करती हैं और इस तरह मानो निराला के रचनाकर्म के प्रति प्रतिश्रुत होती हैं।

प्रार्थना के शिल्प में नहीं सिर्फ़ निरीहता और याचक मानसिकता के निषेध की ही नहीं, एक सकारात्मक और जनवादी विकल्प की अपूर्व और संवेदनशील प्रस्तावना है।

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Paperback

Authors

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

1989

Pulisher

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