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Description
प्रत्यंचा : छत्रपति शाहूजी महाराज की जीवनगाथा
“यह उपन्यास ऋणमुक्ति की एक विनम्र कोशिश है। मेरे लिए यह उपन्यास लिखना इसलिए भी ज़रूरी लगा कि झूठ के घटाटोप में असली नायक गुम न हो जायें और लोग देख सकें कि सम्भव क्या है, असम्भव क्या, सच क्या है और झूठ क्या।”
राजनीतिक गुलामी से भी त्रासद होती है सामाजिक गुलामी। कुछ इसे मानते हैं, कुछ नहीं। जो मानते हैं उनमें भी इसका उच्छेद करने की पहल करने का नैतिक साहस बहुधा नहीं होता। औरों की तरह शाहूजी के जीवन में भी यह त्रासदी प्रकट हुई। राजा थे, चाहते तो आसानी से इससे पार जाने का मानसिक सन्तोष पा सकते थे। मगर नहीं, उन्होंने अपनी व्यक्तिगत त्रासदी को सामूहिक त्रासदी में देखा और मनुष्य की आत्मा तक को जला और गला देने वाली इस मर्मान्तक घुटन और पीड़ा को सामूहिक मुक्ति में बदल देने का संकल्प लिया।
प्राककथन
राजनीतिक गुलामी से भी त्रासद होती है सामाजिक गुलामी। कुछ इसे मानते हैं, कुछ नहीं। जो मानते हैं उनमें भी इसका उच्छेद करने की पहल करने का नैतिक साहस बहुधा नहीं होता। औरों की तरह शाहूजी के जीवन में भी यह त्रासदी प्रकट हुई। राजा थे, चाहते तो आसानी से इससे पार जाने का मानसिक सन्तोष पा सकते थे। मगर नहीं, उन्होंने अपनी व्यक्तिगत त्रासदी को सामूहिक त्रासदी में देखा और मनुष्य की आत्मा तक को जला और गला देने वाली इस मर्मान्तक घुटन और पीड़ा को सामूहिक मुक्ति में बदल देने का संकल्प लिया।
मातृ ऋण, पितृ ऋण, गुरु ऋण, सन्तान ऋण और मित्र ऋण की तरह ही एक ऋण और होता है-समाज का ऋण। इस दुनिया और इस समाज की बेहतरी के लिए जिन्होंने जीवन समर्पित कर दिया, उनका ऋण !
यह उपन्यास उसी ऋणमुक्ति की एक विनम्र कोशिश है। मेरे लिए यह उपन्यास लिखना इसलिए भी ज़रूरी लगा कि झूठ के घटाटोप में असली नायक गुम न हो जायें और लोग देख सकें कि सम्भव क्या है, असम्भव क्या, सच क्या है और झूठ क्या।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
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