Purv Madhyakaleen Bharat

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Purv Madhyakaleen Bharat

Purv Madhyakaleen Bharat

750.00 525.00

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750.00 525.00

Author: Prashant Gaurav

Availability: 5 in stock

Pages: 432

Year: 2019

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126717446

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

पूर्व मध्यकालीन भारत

पूर्वमध्यकाल का इतिहास सम्पूर्ण भारतीय इतिहास का सर्वाधिक विवादास्पद, रुचिपूर्ण और अत्यधिक महत्त्वपूर्ण चरण है। अध्ययन की सुविधा के लिए 600 ई. और 1200 ई. के बीच के काल को परिपक्व पूर्वमध्यकाल कहते हैं। गहराई से देखने पर पता चलता है कि पूर्वमध्यकाल की प्रमुख विशेषताओं का जन्म गुप्तकाल में ही हो चुका था। इस काल को सामन्तवाद, नगरों का पतन और उत्थान, नवीन सामाजिक-व्यवस्था का काल, क्षेत्रीय भाषा और क्षेत्रीय धर्म का काल अथवा मन्दिरों का युग के नाम से भी जाना जा सकता है। दक्षिण भारत में विशाल मन्दिरों का निर्माण इस काल में हुआ। देवदासियों की नवीन परम्परा विकसित हुई। भारतीय दर्शन में नवीन तत्त्व देखे जाने लगे। भक्ति, तन्त्र-मन्त्र और जादू-टोना का महत्त्व बढ़ा। शंकराचार्य के दर्शन को नवीन शैली में लोकप्रियता प्राप्त हुई। क्षेत्रीय शासकों, क्षेत्रीय धर्म एवं क्षेत्रीय भाषा की संख्या बढ़ी।

प्रशासनिक एवं धार्मिक केन्द्रों की संख्या बढ़ी और व्यापारिक नगरों की संख्या नगण्य रही। जातियों एवं उपजातियों की संख्या सौ से अधिक हो गई। छोटे-बड़े और काले-गोरे देवी-देवता पाए जाने लगे। जनसमुदाय की आर्थिक दशा संकटपूर्ण रही। क्षत्रिय के बदले राजपूत पाए जाने लगे। राजाओं के बीच हमेशा युद्ध का माहौल बना रहता था। इनकी आपसी अनेकता से विदेशी शक्तियों ने लाभ उठाया। सबसे पहले अरबों के आक्रमण हुए और उसके बाद गोरी और गजनी के आक्रमणों ने भारत में मुस्लिम शासन की नींव डाल दी। इन सभी तथ्यों पर इस पुस्तक में प्रकाश डाला गया है। गुप्तकाल के पतन के बाद से लेकर गोरी-गजनी के आक्रमण और उनके प्रभाव तक को इसमें विवेचना की गई है। केन्द्रीय प्रतियोगी परीक्षाओं, प्रान्तीय प्रतियोगी परीक्षाओं और दिल्ली तथा पटना विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत पुस्तक को तैयार किया गया है। विश्वास है छात्रों के लिए यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी।

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Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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