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Description
रहा किनारे बैठ
अपने बारे में विशेषणों के इस्तेमाल किये जाने पर शरद जोशी को सख्त एतराज रहा है। और यह एतराज सही भी है। क्योंकि आज जहां हिंदी का अधिकांश व्यंग्य लेखन बैठे ठाले का धंधा हो गया है और भारी भरकम विशेषणों के लबादे ओढ़ कर व्यंग्य के नाम पर महज मसखरे करिश्मों की कतार खड़ी है, वहीं एक किनारे बैठ शरद जोशी की अपनी एक अलग पहचान बन चुकी है। यानी उनकी एक मुकम्मल हैसियत है, या कह लें-हिंदी के व्यंग्य साहित्य को एक नयी दिशा देने वाले इन गिने लोगों में शरद जोशी का नाम महत्त्वपूर्ण नहीं, प्रमुख है। और शायद इसीलिए विशेषणों की चमकार उनके लिए बेमतलब है।
प्रस्तुत संग्रह ‘रहा किनारे बैठ’ शरद जोशी के तीखे व्यंग्य निबंधों का संग्रह है। इन निबंधों में व्यंग्य का वह भोंथरापन नहीं है और न कसैलापन ही है जिससे पाठक की सुरुचि बिदक जाये। इनमें सामाजिक, राजनैतिक, साहित्यिक और आसपास की उन तमाम विसंगत स्थितियों पर बेसाख्ता चोट और खरोंच है, जिन्हें पढ़ कर मुमकिन है, आपको लगे कि ऐसा ही कुछ आप भी करना-कहना चाहते हैं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2006 |
Pulisher |
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