Rajkamal Choudhary Rachanawali : Vols. 1-8

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Rajkamal Choudhary Rachanawali : Vols. 1-8

Rajkamal Choudhary Rachanawali : Vols. 1-8

3,000.00 2,550.00

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Author: Rajkamal Chaudhari

Availability: 5 in stock

Pages: 3286

Year: 2015

Binding: Paperback

ISBN: 9788126728787

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

राजकमल चौधरी रचनावली

राजकमल चौधरी का रचना-संसार स्वातंत्रयोत्तर भारत के प्रारंभिक दो दशकों के बौद्धिक पाखंड, आर्थिक बदहाली, राजनितिक दुर्व्यवस्था, सामाजिक धूर्तता, मानव-मूल्य और नीति-मूल्य के ह्रास, रोटी-सेक्स-सुरक्षा के इंतजामों में सारी नैतिकताओं से विमुख बुद्धिजीवियों के आचरण, खंडित अस्तित्व और भग्नमुख आजादी की चादर ओढ़े समाज की तमाम बदसूरती, और उन बद्सुर्तियों के कारणों का दस्तावेज है। इस दस्तावेज में वह चाहे कविता, कहानी, उपन्यास हो, या निबंध, आलोचना, डायरी उनमे समाज की विकृति का वास्तविक चित्र अंकित हुआ, भयावह यथार्थ का क्रूरतम चेहरा सामने आया, जो आज तक बना हुआ है।

राजकमल चौधरी के रचना-संसार में भाषा, संस्कृति, समाज से निरपेक्ष गिनती के लोग अपना ऐश्वर्य बनाने में जीवन-संग्राम के सिपाहियों के हिस्से की ध्वनि, धूप, पवन, प्रकाश पर काबिज होते जा रहे हैं। गगनचुम्बी अहंकार और तानाशाही वृत्ति से आम नागरिक की शील-सभ्यता के हरे-भरे खेत को कुचल रहे हैं। भाव और भाषा की तमीज से बेफिक्र लोग अर्थ-तंत्र और देह-तंत्र की कुटिल वृति में व्यस्त हैं। सत्ताधारियों की राजनितिक करतूतों को देखते हुए कहा जा सकता है कि मात्र पन्द्र वर्ष के अपने गंभीर रचनाकाल में राजकमल चौधरी ने साढ़े तीन हजार पृष्ठों की अपनी श्रेष्ठ रचनाओं में शायद भावी भारत की पूर्वघोषणा ही कर दी थी।

अकविता के प्रमुख कवि राजकमल चौधरी के लिए कविता अपने विकट समय में जीवन और उसकी जमीन के लिए अभिव्यक्ति का हथियार थी। रचनावली के इस पहले खंड में उन संकलनों की कविताएँ शामिल हैं जो कवि के जीवन-काल में प्रकाशित न हो सकीं। ‘बेदाग दरपन’, ‘एक व्यक्ति प्राणहीन’, ‘अमृता के लिए कविताएँ’, ‘नंगी प्रार्थनाएं’, ‘विचित्रा’ जैसे पांडुलिपियाँ उसी कोटि की हैं। मैथिली कविताओं के साथ-साथ राजकमल की वे फूलकर कविताएँ भी शामिल की गई हैं जो उनकी हस्तलिपि में प्राप्त हुईं। प्रकाशित रचनाओं को प्रकाशन-तिथि के अनुसार रखा गया है, पर प्रधानता रचना-तिथि की ही है। जिन रचनाओं की रचना-तिथि या प्रकाशन-तिथि उपलब्ध नहीं हुई, वे एक जगह अलग से रखी गई हैं।

निस्संदेह, पाठक राजकमल चौधरी की इन कविताओं से गुजरते हुए मनुष्य और उसकी पृथ्वी से जुड़े उन तमाम प्रश्नों से टकराएँगे जो आज भी हल नहीं किए जा सके हैं।

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Paperback

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Pages

Publishing Year

2015

Pulisher

Language

Hindi

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