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Description
रेणु की तलाश
‘रेणु की तलाश’ न तो रेणु का जीवन-वृत्तान्त है न संस्मरण न समीक्षा; अलबत्ता इस किताब में इन तीनों विधाओं के तत्त्व मौजूद हैं। इस पुस्तक के लेखक भारत यायावर, रेणु की खोज को, अपने जीवन की ‘परम साधना और सार्थकता’ मानते हैं पर यह शोध-कार्य किस्म की शुष्क खोज नहीं है। यह एक कथा-लेखक को उसके अंचल में, उसके परिवेश में, उसके पात्रों और उसके अनुभव जगत् के बीच खोजना है। यह रेणु के कथा-स्रोत, उनकी अन्तःप्रेरणाओं और उनकी रचना प्रक्रिया की तलाश है। यह रेणु को रेणु बनते हुए और उनकी रचनाओं को रचे जाते हुए देखना है। इस क्रम में जहाँ रेणु के बरे में लोगों से सुने हुए संस्मरण पाठक को बाँधे रखते हैं वहीं ‘चम्बल घाटी में डाकुओं के बीच मैला आँचल’ जैसा अज्ञात या अल्पज्ञात प्रसंग रोमांचित करता है।
रेणुमय होने के बावजूद इस पुस्तक में कुछ और भी छोटे-छोटे तलस्पर्शी लेख हैं, जैसे ‘साहित्य और राजनीति’, ‘साहित्य का व्यवसायीकरण’, ‘गांधी और जयप्रकाश’ आदि; और निराला, दिनकर, अज्ञेय, नामवर सिंह आदि को श्रद्धा-निवेदित टिप्पणियाँ हैं। जाहिर है, यह पुस्तक रेणु की तलाश होते हुए भी वहीं तक सीमित नहीं रहती।
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रेणु बहुत कम उम्र से ही तरह-तरह के आन्दोलन में भाग लेते रहे। स्वाधीनता संघर्ष से लेकर जनआन्दोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रहती थी। नेपाली क्रान्ति से लेकर चौहत्तर के आन्दोलन में भी उनकी सक्रिय भागीदारी थी। प्राकृतिक आपदाओं में भी वे पीड़ित मनुष्यों की सेवा करते थे। यही कारण था कि उनका व्यापक जनसमुदाय से जुड़ाव था और अनुभव-सम्पदा विशाल थी। इस चेतना ने उन्हें सामान्य मनुष्य से जोड़ रखा।
रेणु का देखना बिल्कुल अपनी तरह का है और वे इस प्रक्रिया में बहुत कुछ नया खोजकर लाते हैं। ऐसे-ऐसे पात्र, जीवन-स्थितियाँ और शब्द जो साहित्य में पहली बार अपनी जगह बना रहे थे। रेणु की आंचलिकता में भी आधुनिकता बोध है। जागरण का छन्द है। राष्ट्रीय पतन पर उनका पात्र बावनदास एक वाक्य दोहराता है- ‘भारतमाता जोर-जोर रो रही है।’ भूख, गरीबी, अशिक्षा, अन्धविश्वास, साम्प्रदायिकता राष्ट्रीय प्रश्न हैं, जो उनकी आंचलिकता में समाहित हैं। इसीलिए वे स्थानिक होते हुए भी राष्ट्रीय हैं।
– इसी पुस्तक से
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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