- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
सात आसमान
यह उपन्यास लम्बे कालखंड, लगभग चार सौ साल के दौरान एक परिवार की कहानी है। इसमें मौखिक परम्परा, कहीं-कहीं वातावरण बनाने के लिए इतिहास और कहीं निजी अनुभवों का सम्मिश्रण है। एक तरह से यह लम्बा बयान है जो पात्र स्वयं देते हैं। लेखक भी एक द्रष्टा है। पात्र न तो उसके बनाए हुए हैं और न उसके वश में हैं। अपनी गति और स्थितियों के अनुसार वे जो अनुभव करते हैं, जैसा व्यवहार करते हैं, वह उपन्यास में उन्ही की जुबानी आया है। एक तरह से इस उपन्यास को शास्त्रीय परिभाषा के अन्तर्गत भी नहीं रखा जा सकता क्योंकि इसमें वह एकसूत्रता नहीं है जो प्रायः उपन्यासों में होती है। यदि इसका कोई सूत्र है तो वह जीवन है जो लगातार बदल रहा है और नए-नए साँचों में ढल रहा है।
लम्बे विवरण और संवाद या पात्रों की सोच उन्हें उधेड़ती चली जाती है। अच्छा क्या है? बुरा क्या है? जीवन जीने का सही तरीक़ा क्या है? जीवन क्या है? वे लोग कैसे थे जिनकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती? —आदि सवालों के जवाब उपन्यास नहीं देता, न उन पर कोई ‘वैल्यू जजमेंट’ देता है। वह केवल पात्रों और परिस्थितियों को उद्घाटित करने में ही व्यस्त है।
‘सात आसमान’ भारत के सामन्ती समाज के कई युगों को उद्घाटित करता है। इसके साथ-साथ हर युग के मनुष्य और उसके सरोकारों को समझना ही उपन्यास का विषय है। न तो इसमें किसी को गौरवान्वित किया गया है और न किसी को निन्दनीय माना गया है। कहीं मानवीय सम्बन्ध बहुत सशक्त और गहरे दिखाई देते हैं तो कहीं पतनशीलता की चरम सीमा तक पहुँच गए हैं।
उपन्यास में अतीत के प्रति कोई मोह नहीं है। यह अतीत को वर्तमान के सन्दर्भ में या एक लम्बी यात्रा के पिछड़े पड़ावों को समझने के रूप में ही लेता है। उपन्यास में ‘नास्टैल्जिया’ भी नहीं है। हो सकता है कि पात्रों के अन्दर जाने की कोशिश यह दिखाए कि लेखक पात्रों की परतें उघाड़ते हुए निर्मम ज़रूर हो गया है, लेकिन वह सब जो कुछ हुआ है इसे न तो लेखक बदल सकता था और न बदलना चाहता ही था।
किसी प्रकार की वैचारिकता या बौद्धिकता या दार्शनिकता या प्रतिबद्धता को आरोपित न करते हुए भी यह उपन्यास निश्चय ही दृष्टिसम्पन्न उपन्यास है क्योंकि यह यथार्थ को उसकी पूरी समग्रता और गतिशीलता में पकड़ता है। चाहें तो इसके माध्यम से सामाजिक रिश्तों, राजनीतिक हलचलों और सांस्कृतिक विकास के बिन्दुओं को रेखांकित किया जा सकता है। पर यह सब पाठकों या आलोचकों पर निर्भर है। यानी यह ‘इंटरप्रेटेशन’ के खुला हुआ है।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.