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Description
सच-झूठ
बंगला की ख्यातनामा औपन्यासिक महाश्वेता देवी बंगला-पाठकों से अधिक हिंदी-पाठकों में परिचित व् प्रसिद्ध हैं। अपनी यथार्थवादी कृतियों के कारण वे पाठकों के विशाल समूह में आदर की पात्री हैं। महाश्वेता देवी के उपन्यासों की विषय-वस्तु कुछ इतनी नवीन, अनजानी और आकर्षक होती है कि उसे पढ़ते समय पाठक एक अन्य भाव-जगत की सैर करने लगता है।
अपने ‘सच-झूठ’ उपन्यास में वे एक नयी जमीन हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं। भारत में नव-धनान्य वर्ग की अपनी विचित्र लीला है। अब वे घर-मकान छोड़ प्रोमोटरों द्वारा निर्मित बहुमाजिली इमारतों के फ्लैटों में कई-कई मजिलों में बसते हैं। इन फ्लैटों की सजावट उनके धन के प्रदर्शन का साधन है। लेकिन इन बहु-मंजिली इमारतों के पार्श्व में एक पुराणी बस्ती का होना भी आवश्यक है। वह बस्ती न रहे तो फ्लैटों में बसनेवाली मेमसाहबों की सेवा के लिए दाइयाँ-नौकरानियाँ कहाँ से आयें। फिर इन दाइयों की साहबों को जरूरत रहती है। मेमसाहबों की गैरमौजूदगी में ये युवती दाइयाँ साहबों के काम आती हैं। ऐसी ही एक दाई और धनिक साहब अर्जुन के चारों और घुमती यह कथा धनिक वर्ग के जीवन के गुप्त रहस्यों को प्रकट करती है जहाँ गरीबों का शोषण आज भी बरक़रार है। रहस्य-रोमांच से भरपूर एक चमत्कारी कथा।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2013 |
Pulisher |
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