Sada Vatsale Matrabhoome

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Sada Vatsale Matrabhoome

Sada Vatsale Matrabhoome

100.00 95.00

In stock

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Author: Gurudutt

Availability: 5 in stock

Pages: 192

Year: 2002

Binding: Hardbound

ISBN: 0

Language: Hindi

Publisher: Hindi Sahitya Sadan

Description

सदा वत्सले मातृभूमे !

मातृभूमि से अभिप्राय हिमालय पर्वत, गंगा-यमुना इत्यादि नदियाँ, पंजाब, सिंध, गुजरात, बंगाल इत्यादि भू-खंड नहीं, वरन् यहीं की समाज है। अतः देश-भक्ति वस्तुतः समाज की भक्ति को कहते हैं।

भारत भूमि की जो विशेषता है, वह इस देश में सहस्रो-लाखों वर्षों में उत्पन्न हुए महापुरुषों के कारण है; उन महापुरुषों के तप, त्याग, समाज-सेवा तथा बलिदान के कारण है; उनके द्वारा दिए ज्ञान के कारण है।

प्रकाशकीय

नमस्ते !

सदा वत्सले मातृभूमे !

पतत्वेष कायः त्वदर्थे !!

हे वत्सलमयी मातृभूमे ! तुम्हें नमस्कार करता हूँ। यह शरीर तुम्हारे निमित्त अर्पित है।

यह तो स्पष्ट हो चुका है कि हिंदू संस्कृति, हिंदू मान्यताओं तथा भारतीय ज्ञान-विज्ञान को नष्ट-भ्रष्ट करने के लिए अंग्रेजों ने षड्यन्त्र रचे। अंग्रेजों ने देखा था कि एक हज़ार साल तक गुलाम रहते हुए भी हिन्दू ने अपनी स्वतंत्रता प्राप्ति करने का प्रयास नहीं छोड़ा। अंग्रेजों के काल में तो आंदोलन अति उग्र हो गया था। यहाँ तक कि आंदोलन इंग्लैंड की भूमि तक पहुंच गया था।

यह इस कारण संभव हुआ क्योंकि हिंदुओं का अपनी संस्कृति, धर्म तथा ज्ञान-विज्ञान की श्रेष्ठता पर विश्वास स्थिर था। अंग्रेजों ने अनुभव किया कि हिंदुओं के मन से यह श्रेष्ठता समाप्त किए बिना आंदोलन दबाया नहीं जा सकता।

अंग्रेजों द्वारा सबसे विनाशकारी षड्यन्त्र था कांग्रेस की स्थापना। कांग्रेस की सदस्यता के लिए एक शर्त रखी गई थी कि वह अंग्रेजी शिक्षित होना चाहिए। और अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य था हिंदुओं को अपने धर्म से विमुख करना।

अंग्रेजी शिक्षा के विषय में, भारत में अंग्रेजी शिक्षा आरंभ करने वाले मैकॉले ने अपने पिता को लिखे पत्र में कहा था-अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं जो सत्य हृदय से अपने मज़हब पर आरूढ़ हो।

कांग्रेस के संस्थापक ह्यूम का आशय यह था कि हिन्दुस्तान की राजनीति की बागडोर उन लोगों के हाथ में हो, जो यदि भारत को स्वतंत्रता देनी पड़े, तो हिंदू संस्कृति, हिंदू मान्यताओं तथा ज्ञान-विज्ञान को भ्रष्ट करते रहें। अंग्रेज समझता था कि अंग्रेजों का प्रभाव इस प्रकार चिरकाल तक बना रहेगा।

कांग्रेस ने यही किया। इतिहास साक्षी है कि भारतीय जनता के साथ विश्वासघात किया गया। देश की हत्या अर्थात् भारत विभाजन को माना, जिसके कारण लाखों व्यक्ति मारे गए, करोड़ों बेघर हुए, अरबों-खरबों की सम्पत्ति नष्ट हुई। इतना ही नहीं राजनीति स्वतंत्रता प्राप्त करके भी बौद्धिक तथा मानसिक दासता में भारतवासी जकड़े गए। आज का भारत उस शिक्षा के परिणामस्वरूप पाश्चात्य रंग में रँगा हुआ है। नास्तिक्य का बोलबाला है। भारतीय ज्ञान-विज्ञान की बात करो तो भारतवासी बिदक उठते हैं।

समाज में यह सामाजिक, मानसिक, राजनीतिक परिवर्तन किस प्रकार आया, इसका युक्तियुक्त वर्णन तथा विश्लेषण श्री गुरुदत्त के उपन्यासों में हमें मिलता है। इस दृष्टि से उनके निम्न उपन्यास उल्लेखनीय हैं—ज़माना बदल गया, दो लहरों की टक्कर, न्यायाधिकरण।

प्रथम उपन्यास ‘सदा वत्सले मातृभूमे’ 1945 से 1952 तक की पृष्ठभूमि पर लिखे गए उपन्यासों की श्रृंखला में हैं-‘विश्वासघात’, ‘देश की हत्या’, ‘दासता के नये रूप’ तथा ‘सदा वत्सले मातृभूमे !’

लेखक का मत है कि हिंदू विरोधी राजनीति के दुष्परिणाम को मिटाने के लिए घोर प्रयत्न करना पड़ेगा। तब ही हम वत्सलमयी मातृभूमि (भारत माता) के ऋण से उऋण हो सकेंगे।

इसमें संदेह नहीं कि उपर्युक्त चार उपन्यासों में इतना स्पष्ट राजनीतिक घटनाओं का सजीव चित्रण एवं रोमांचकारी वर्णन, विश्लेषण कोई भी अन्य लेखक प्रस्तुत करने का साहस नहीं कर सका था।

हमें विश्वास है कि प्रत्येक देशभक्त, भारत माता का पुजारी इन उपन्यासों को गंभीरतापूर्वक पढ़कर प्रेरणा प्राप्त कर सकेगा। ये उपन्यास बार-बार पढ़ने योग्य हैं तथा किसी भी निजी अथवा सार्वजनिक पुस्तकालय की शोभा बन सकते हैं। आपके पुस्तकालय में इन पुस्तकों की उपस्थिति आपकी जागरुकता का परिचय देगी।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2002

Pulisher

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