- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
Description
सदियों के पर
रिंद’ साहब के शेर भाव जगत की जटिलताओं और अनुभव की बहुरूपता का एक संगम पेश करते हैं। बीच-बीच में कहीं उनका समय भी अपना सिर उठाकर खड़ा हो जाता है और कहीं सामाजिक विद्रूपता भी कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है । उनकी शायरी को न तो केवल अन्तर्मन की शायरी कहा जा सकता है और न केवल ज़ालिम ज़माने के अनुभवों पर आधारित शायरी कहा जा सकता है दरअसल उसकी विविधता उसकी विशेषता है। उनकी शायरी उर्दू ग़ज़ल की एक बुनियादी माँग सांकेतिकता और बिम्बात्मकता पर पूरा ध्यान देती है ।
– प्रो. असग़र वजाहत
मेरी उत्कट इच्छा थी कि आदरणीय ‘रिंद’ की शायरी का हिन्दी लिप्यन्तरण हो । गाहे-बगाहे मैंने उनको अपनी यह इच्छा ज़ाहिर भी की। उनकी शायरी सहज रूप से न केवल प्रभावित करती है, अपितु श्रोताओं के सीधे दिल में उतर जाती है। उनका निश्छल व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों सहज रूप से आकर्षित करते हैं । ‘रिंद’ की शायरी में बिम्बात्मकता और व्यंजना देखते ही बनती है । सम्बन्धित शब्दों का प्रयोग किये बिना ही अपनी बात कह देना मामूली हुनर नहीं है। एक परिपक्व शायर ही इस अन्दाज़ से अपनी बात कह सकता है।
– विज्ञान व्रत
Additional information
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
Language | Hindi |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.