Samkalin Gadhya Ke Aaspass

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Samkalin Gadhya Ke Aaspass

Samkalin Gadhya Ke Aaspass

195.00 147.00

In stock

195.00 147.00

Author: Karmendu Shishir

Availability: 5 in stock

Pages: 180

Year: 2018

Binding: Paperback

ISBN: 9789389191363

Language: Hindi

Publisher: Nayeekitab Prakashan

Description

समकालीन गद्य के आसपास

नागार्जुन के भीतर ठक्कन की उपस्थिति इतनी रची-बसी है कि ग्राम्य–संस्कृति का कोई कोना अँतरा ओझल नहीं होता। बेशक कभी-कभी नागार्जुन का हस्तक्षेप भी होता है जैसे इक्के के ओहार (पर्दे) की चर्चा करते समय वे बनारस या इलाहाबाद के इक्कों में अंतर बताने लगते हैं। मगर ऐसे प्रसंग आते ही कम हैं। हमेशा उनकी निगाह जीवन के बारीक रग–रेशों तक जाती है। ऋतुचक्र के परिवर्तनों और उसके पड़ते असर को अंकित करते समय माह, नक्षत्रों की प्रकृति उनके जीवन–बोध में सहज शामिल है। जैसे रोहिणी नक्षत्र में आमों का पकना। प्रकृति के साथ जीवन तादाम्य का यह सहज-स्वाभाविक साक्ष्य है। उसी तरह मिथिलांचल की स्त्रियों में शामिल कुटीर उद्योग की शक्ल में तकली, पुन्नी और बारीक से मोटे सूतों के विभिन्न प्रकार भी आते हैं अथवा उमानाथ के कलकत्ता प्रवास प्रसंग में बिलकुल ठक्कन के नजरिये से उन्होंने ट्राम परिचालन का बड़ा ही कौतूहल भरा वर्णन किया है। ऐसे तमाम छोटे–छोटे प्रसंगों के बीच अचानक सामंती जीवन शैली में एक दिलचस्प प्रसंग बदन टीपने का आता है।

मालिक और रेयान के श्रम रिश्तों में यह प्रसंग अद्भुत तरीके से बड़ी बारीकी से वर्णित हुआ है। शोषण का यह सहज रूप उपन्यास में एकदम अनायास ढंग से आता है। ‘‘जलयोग कर चुकने पर मालिश का अवसर आया। असल में यह अवसर रात का खाना खा लेने के बाद आया करता है। आप खाकर लेट जाइये। थकावट ज्यादा है। खवास आयेगा। हाथ में जरा–सी चिकनाई (तेल) मखाकर वह आपके पैरों से शुरू करेगा, एक-एक नस को मानो दुहता चला जायेगा। पैर, गोड़, टाँग, घुटने, जाँघ, कमर, पीठ, पसलियाँ, गर्दन, कंधे, सिर, माथा, कपार, कनपटी, बाँह, केहुनी, कलाई, हाथ, पंजे, अंग–अंग की नसों को दुह लेगा। पंजे से पंजा लड़ाकर अँगुलियों के एक-एक पोर को चटकाकर अपने हाथ एक बार फिर आपके पैरों पर ले जायेगा।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2018

Pulisher

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