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Description
समुद्र में खोया हुआ आदमी
‘‘समुद्र में लापता हुए लोग भी बरसों बाद लौटकर आए हैं…’’ हरबंस उन्हें समझाने लगा – ‘‘बहुत बार समुद्रों में तूफ़ान आ जाते हैं। जहाज टूट जाते हैं। लोग समुद्र में खो जाते हैं…तैरते-तैरते वे अनजानी जगहों पर जा लगते हैं… ‘‘लेकिन बीरन न कहीं पहुंचा, न उसने किसी का दरवाजा खटखटाया, पहुंची सिर्फ उसके हमेशा के लिए विलीन हो जाने की खबर। अवाक् खड़ा रह गया, अपनी दैनन्दिन चुनौतियों में उलझा-फँसा उसका परिवार। बीरन जिसे हमेशा अपने बाबूजी की बेबसी और मायूसी सताती रहती थी, जो कॉलेज के दिनों में शाम को ही अपनी ड्रेस धोकर सूखने के लिए ढाल देता था, जूतों पर खड़िया फेर लेता था और जिसका भार, जिसकी मौजूदगी घर में किसी को महसूस नहीं होती थे, वही बीरन अपने बोझ से सबको मुक्त कर गया। मध्यवर्गीय जीवन के सफल चितेरे कमलेश्वर ने एक मार्मिक कथा के जरिये इस उपन्यास में डॉ समुद्रों की तरफ इशारा किए है – एक पानी का वह असीम सागर, जिसमे बीरन खो गया और दूसरा महानगर की ठंडी, उदासीन भीड़ का पराया समुद्र, जिसमे उसके पिता श्यामलाल और मासूम बहनें अपनी अलक्षित जिजीविषा के साथ तैरने की कोशिश करते रहे। आधुनिक सभ्यता के अथाह समुद्र में आज का मध्यम-वर्गीय व्यक्ति अपनी सीमाओं और विडम्बनाओं के साथ किस तरह लुप्त हो जाता है, यही इस उपन्यास का केन्द्रीय विषय है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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